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दिगम्बर जैन साधु क्षल्लकश्री नेमिसागरजी महाराज गिणोई जिला जयपुर ( राजस्थान ) में श्री सुवालालजी के यहां श्री किस्तूरचन्द ने जन्म लिया था। आपको जाति खण्डेलवाल गोत्र गंगवाल थी। शिक्षा साधारण ही थी। सं० १९१६ में आ० महावीरकीर्तिजी से क्षुल्लक दीक्षा ली । आपके आ० क० चन्द्रसागरजी महाराज के प्रवचनों से प्रभावित होकर दीक्षा धारण करने के भाव हुए थे । झाबुआ व थादला में संवत् २०१८ में पेचिस, बुखार व खून आदि की भयंकर बीमारियां हुई तब आपने किसी भी प्रकार का इलाज नहीं कराया श्रावकों के अनेक प्राग्रह करने पर भी कोई उपचार नहीं कराया और सव रोगों को शांति पूर्वक सहन किया । धन्य है आपका जीवन जो आत्म साधना व स्वाध्याय रत रहकर आगे भी चारित्र बढ़ाने की भावना रखते हैं आगे आपने मुनि दीक्षा लेकर आत्म उत्थान किया।
क्षुल्लक श्री चन्द्रसागरजी महाराज
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उपादान में शक्ति तो है किन्तु निमित्त पाकर ही जाग्रत होती है । क्षुल्लक चन्द्रसागरजी म० (दीक्षा पूर्व) के वैराग्य में प्रमुख निमित्त कारण पारिवारिक घटना चक्र और गुरुदर्शन रहा है । अग्रवाल जैन परिवार में जन्मे मंगलराम जैन मात्र अपनी जन्मभूमि पहाड़ीग्नाम (भरतपुर) की विभूति न रहकर समूचे श्रावक समुदाय की विभूति बन चुके हैं । सं० २००६ में पू० प्रा० श्री महावीरकीर्तिजी म० से सप्तम प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर संसार सुखों से जो मुख मोड़ा तो वह विराग की बढ़ती धारा सं० २००७ में मल्हारगंज इन्दौर में क्षुल्लक दीक्षा के रूप में सामने आई। तभी से आप कठिन तपश्चर्या करते हुए अपनी आत्मा को शिवपथगामी बनाने में तत्पर हैं।
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