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दिगम्बर जैन साधु रही थी। शाम को आप सम्मेदशिखरजी पहुंचे तथा रात्रि वहीं बिताई और सुबह तीन बजे उठ कर पहाड़ पर दूसरे और लोगों के साथ चढ़े तथा सम्मेदशिखरजी की वंदना की । पुनः दूसरे दिन वंदना करते हुए जब पार्श्वनाथजी के टोंक पर पहुँचे तो पारस प्रभु को प्रणाम कर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया और कहा कि आज से मुझे सम्पूर्ण प्रकार की स्त्रियों का त्याग है । उस समय आपकी उम्र १८ वर्ष की थी । १८ वर्ष में ब्रह्मचर्य व्रत लेना इनके त्यागमयी एवम् संयमी जीवन एवं उच्च विचार का परिचारक था। गिरि से लौटने के बाद पिताजी ने इनको शादी के लिये कहा लेकिन
आपने तो व्रत धारण कर लिया था अतः इन्कार कर दिया कि मैं शादी नहीं करूंगा। कलकत्ता में ही आपको आचार्य रत्न श्री १०८ श्री देश भूषणजी महाराज के दर्शनों का पुण्य लाभ मिला, आचार्य श्री का चार्तुमास कलकत्ता में हुआ तथा आप व आपकी बहिन रामदेवी ने चौका लगाया। चार्तुमास पूरा होने पर प्राचार्य श्री ने सम्मेदशिखर को प्रस्थान किया तो आप भी भक्तिवश संघ के साथ चल दिये । वहाँ पहुँच कर आपने दूसरी प्रतिमा के बारह व्रतों को धारण किया। तथा उसके बाद श्री .. १०८ आचार्य रत्न देशभूषणजी ने इनकी अगाढ भक्तिवश वैयावृत्ति की भावना देखकर आज्ञा दी कि पोखेराम बेटा तुम हमारे साथ बाहुबली की यात्रा के लिये चलो । महाराज की आज्ञा को पोखेराम ने सहर्ष स्वीकार किया और महाराज के साथ चल दिये । आप आचार्य देश भूषणजी के संघ में ही रहने लगे, तथा वैशाख सुदी तेरस सं० २०२० बुधवार के दिन आचार्य श्री देशभूषणजी ने आपको क्षुल्लक दीक्षा दी और ज्ञानभूषण शुभ नाम आपका रक्खा । तीन वर्ष नो माह आपने क्षुल्लक अवस्था में व्यतीत किये और श्री शान्तिमतीजी से आपने व्याकरण एवं धर्म ग्रन्थों का ज्ञान प्राप्त किया तथा पंडित अजितप्रसादजी से सर्वार्थसिद्धि पढ़ी । इसके बाद माघ शुक्ला सप्तमी शुक्रवार सन् १९६६ में आचार्य देशभूषण महाराज से मुनि दीक्षा लेकर महावतों को धारण किया। इस प्रकार आप अनेक तीर्थों को वन्दना करते हुए, जगह जगह विहार करते हुए लोगों को धर्मोपदेश देते हैं।