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दिगम्बर जैन साधु क्षुल्लक श्री हेमसागरजी
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रजपूती साहस की कहानियों में बूदी को भी कुछ हिस्सा मिला है । नैनवा एक छोटा सा गांव इसी जिले की सरहदी में बसा है जिसके आंचल में विराग की साहस कथा सिमटी पड़ी है । श्री फूदालाल खण्डेलवाल अपनी पत्नी केसरबाई के साथ हमेशा साधु संगति और वैयावृत्ति में समय बिताते थे। सं० १९७८ आषाढ की अमावस्या को उनके घर एक पुत्र रत्न का जन्म हुआ जो उनके गुणों की अनुकृति मात्र था। पिता ने स्नेह के साथ पुत्र का नाम कल्याणमल रखा। शायद ठीक भो था भविष्य में इससे जगकल्याण की सम्भावना उन्हें पालना झुलाते ही दिख गई थी। सं० २०२३ कार्तिक शु० १३ को टोंक में पू० आ० श्री धर्मसागरजी म० के शुभागमन के समय कल्याण मल ने सप्तम
प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर स्वकल्याण पथ में अपने कदम बढ़ा दिये । इससे ठीक आठ वर्प वाद मालपुरा ( टोंक ) में सं० २०३१ ज्येष्ठ शु० ५ को पू० मुनि . श्री सन्मतिसागरजी म० (टोडारायसिंह वाले ) से क्षुल्लक दीक्षा लेकर अपना नाम सार्थक कर दिया। दीक्षा देकर प्राचार्य श्री ने आपका नाम क्षुल्लक हेमसागर रखा । आप भी हेम सदृश अपनी कांति से समाज में निर्मल रत्नत्रय के बीज वो रहे हैं । आपने अब तक मालपुरा नगरपोर्ट, उनियारा, सिवाड, दूनी में चातुर्मास कर श्रावकों पर अनुग्रह किया है । जिन शासन की प्रभावना के लिये वेदी प्रतिष्ठा, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, मंदिर जीर्णोद्धार आदि कार्यों के लिये सतत् प्रेरणा करते रहते हैं। .
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क्षुल्लक श्री विजयसागरजी आपका जन्म दोसा जिला जयपुर ( राजस्थान ) में श्री भूरामलजी की धर्मपत्नी श्री गेंदाबाई की कुक्षि से वैसाख सुदी नवमी सं० १९६६ में खण्डेलवाल जाति में . जन्म लिया। आपको शिक्षा सामान्य हो रही। सं० २००३ में मुनि मल्लिसागरजी महाराज से जयपुर में क्षुल्लक दीक्षा ली । आपने भारत वर्ष के अनेक प्रान्तों में विहार कर धर्म प्रभावना की। अाज भी आप आ० क० सन्मतिसागरजी महाराज से मुनि दीक्षा लेकर आत्म कल्याण के पथ , पर संलग्न हैं।