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दिगम्बर जैन साधु
क्षुल्लक चारित्रसागरजी
आपने देवगांव, तालुका कन्नड़ जिला औरंगाबाद में दिनांक २८-२-१९१८ में जन्म लिया था। आपका पूर्व नाम चन्दूलालजी शाह था । धार्मिक परिवार में जन्म होने के कारण आपने भी अपने मन को धर्म में लगाया तथा मुनि सुमतिसागरजी से ५ वी प्रतिमा के व्रत धारण किए। मराठी में शिक्षा प्राप्त की तथा सन् १९६४ आडूल महाराष्ट्र में मुनि सन्मतिसागरजी महाराज से क्षुल्लक दीक्षा ली। आपने दहीगांव क्षेत्र पर एक गुरुकुल की स्थापना कराई जो विधिवत चल रहा है । आपके माध्यम से सैंकड़ों जीव आत्म कल्याण कर रहे हैं।
क्षल्लक मानसागरजी ___ वस्त्र व्यवसायी बाबूलाल जैन ने पुण्य की एक ' हल्की सी सुगन्ध न विखेरी होती तो ऊँचे-ऊँचे सांगौन वृक्षों से आच्छादित जवलपुर जिले के जंगलों में सुदूर तक वसी अकृतपुण्य के साकार रूप भील-कोल को वस्तियों के मध्य "वचैया" गांव महत्वहीन ही बना रहता । सन् १९७६ में श्रावक प्रमुख श्री उदयचन्द जैन एवं मोतीलाल जैन की विनती स्वीकार कर पू० प्रा० श्री सन्मतिसागरजी म. बाकलग्राम में पधारे तो पुण्य के सुवासित समीर से फिर वह समूचा इलाका ही नहा गया। गृह विरक्त बाबूलाल जैन ने गुरु आगमन की चर्चा सुनी तो चरणों का शरणा
गहने दौड़ आया । गुरु कृपा से उसकी मुराद पूरी हुई। दम्पत्ति श्री भाषकलाल झुलकूवाई की संतान को आचार्य श्री ने ७ दिसम्बर ७९ को बाकल के श्रावकों के समक्ष क्षुल्लक दीक्षा प्रदान कर 'मानसागर" नाम विख्यात किया। इस प्रकार वि० सं० १९६५ से इस भव की नर पर्याय में पड़ी आत्मा के कर्मास्रवों के स्रोतों पर संवर की डांट लगाई। गुरु चरणों में रहकर क्षुल्लक मानसागरजी शास्त्रों के अध्ययन-मनन में अपनी आत्मा को लगाकर वैराग्य भावना भा रहे हैं ।