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दिगम्बर जैन साधु
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उदयपुर के जिलों में अनेक गांवों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं अनेक वेदी प्रतिष्ठा, बड़े बड़े विधानों का आयोजन भी आपने निर्भीमता से केवल धर्म प्रभावना की भावना को लेकर कराये हैं जिससे तीनों जिलों में श्रापका बहुत ही अच्छा प्रभाव रहा । परम पू० आचार्य श्री धर्मसागरजी महाराज सहारनपुर सं० २०३२ के चातुर्मास के बाद मुजफ्फर नगर संघ का विहार हुआ था । वहां पर आचार्य श्री से आपने नवमी प्रतिमा के व्रत लिये और आपका नाम धर्मभूषण वर्णी रखा । आप विशेष कर संघ के साथ रहते थे । आपके भाई ब्र० मणीलालजी भी आपके साथ एवं आपकी माता ब्र० चमनीबाई तीनों प्राणी
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साथ में रहकर आहार दान आदि देते हुवे निरन्तर धर्मध्यान करते थे । श्राचार्य श्री का चातुर्मास २०३८ का बांसवाड़ा में था जब महाराज श्री के सान्निध्य में ही माता चमनीबाई का धर्मध्यान पूर्वक समाधि मरण हो गया ।
सं० २०३९ के वैसाख कृष्णा ७ को आदिनाथ दि० जैन मंदिर पारसोला में मानस्तम्भ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा जो कि आपके द्वारा ही सम्पन्न हुई उसी अवसर पर परम पूज्य १०८ श्राचार्य शिरोमणि धर्मसागरजी से विशाल मुनिसंघ के सान्निध्य में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। तब इनका नाम योगेन्द्रसागरजी रक्खा गया । अभी आप परम पू० १०८ श्री श्रजितसागरजी महाराज के संघ में रहते हुवे निरन्तर पठन पाठन एवं धर्मध्यान में रत हैं ।
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