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दिगम्बर जैन साधु
क्षुल्लक श्री योगेन्द्रसागरजी महाराज
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आपका जन्म राजस्थान के पवित्र जिला बांसवाड़ा सुरम्य भोमपुर गांव में श्रीमान् श्रेष्ठी श्री कस्तूरचन्दजी जाति नरसिंहपुरा माता चमचोवाई की कुक्षि से संवत् १९८१ मार्गशीर्ष शुक्ला २ की शुभ वेला में हुवा । आपका जन्म नाम फूलचन्द रक्खा गया। आप दो भाई थे। छोटे का नाम मणीलालजी था । देवयोग से आपके पिताजी का देहावसान हो गया जब आप तीन या चार वर्ष के थे। माता ने दोनों को बहुत ही लाड़ प्यार से बड़ा किया । जब आप होशियार हुये तो यथा योग्य पाठशाला में पढ़ने भेजा गया और साथ ही धार्मिकज्ञान भी कराया। अल्पवय में ही आपकी शादी करादी गई । आपके तीन पुत्र व तीन पुत्रियां हैं । आपमें वचपन से धार्मिक संस्कार होने से शास्त्रों का अध्ययन आप बड़ी रुचिपूर्वक करते थे । राजनीति में भी आपका स्थान था जो कि १८ साल तक आप निर्विरोध सरपंच के पद पर रहे इसलिये जन साधारण में भी आपका अच्छा प्रभाव था । हर साल जहां तहां साधु संघ विराजमान रहते आप आहारदान के लिये चौका लेकर जाते एवं अनेक वार सपरिवार सम्मेदशिखर, गिरनार, बाहुबली आदि की तीर्थयात्रा एवं जन्म स्थान भीमपुर में नवीन चन्द्रप्रभु दिगम्बर जैन मन्दिर के निर्माण कार्य में एवं वहां दो बार पंच कल्याणक प्रतिष्ठा आदि में आप का ही पूर्ण सहयोग रहा एवं सिद्धचक्र विधान आदि जिनभक्ति निरन्तर करते रहते थे।
परम पू० १०८ आचार्य प्रवर श्री शिवसागरजी महाराज का संघ सहित उदयपुर सं० २०२५ का चातुर्मास था जब पूज्य मुनि सुपार्श्वसागरजी महाराज की समाधि के अवसर पर आप सपरिवार चौका लेकर गये और वहां आपने सातवी प्रतिमा के व्रत धारण कर लिये । जब से आपका वैराग्य. बढ़ता गया। थोड़े दिनों में ही गृहजाल का त्याग कर दिया और बांसवाड़ा में एवं डंगरपुर .