________________
[ १६६
दिगम्बर जैन साधु । आर्यिका सन्मतिमाताजी
ARATHI
TA
पूज्य १०५ श्री सन्मति माताजी का जन्म वि० सं० १९७७ चैत्र शुक्ला नवमी को वनगोठडी गांव में हुआ । आपके पिता का नाम भूरामलजी कासलीवाल था और माता का नाम सूरजबाई था और आपका नाम कमलाबाई रक्खा । आपके दो भाई और एक बहन हैं। माताजी का विवाह अल्पायु में ही श्री किस्तूरचन्दजी काला के साथ हुआ था आपके एक पुत्री हुई जिसका नाम गुणमाला है । आप घर सम्पन्न परिवार वाली हैं, भोग सामग्री की सुविधाओं की कोई
कमी नहीं थी अतः गृहस्थाश्रम सुख से व्यतीत हो रहा था, किन्तु दुर्दैव को यह सह्य नहीं हुआ स्वल्प काल में ही आपके पति का स्वर्गवासहो गया । युवावस्था में जिन्हें यह दुःख प्राप्त हो जाता है उस दुःख का अनुभव भुक्त भोगी ही जानता है अन्य नहीं। किन्तु आपने अपने जीवन को धर्माचरण की तरफ मोड़ा और साधु संसर्ग से अपने को संसार पथ से त्याग के पथ पर चलाया। मन में वैराग्य की भावना उत्तरोत्तर बढ़ने लगी और १०८ श्री ज्ञानसागरजी महाराज से दूसरी तथा पांचवीं प्रतिमा के व्रतों को ग्रहण कर लिया। इतने से शान्ति न मिली और पूज्यपाद आचार्य १०८ श्री शिवसागरजी महाराज से वि० सं० २०२२ में कार्तिक शुक्ला १० को क्षुल्लिका दीक्षा ली और पश्चात् आठ महीने बाद ही प्रा० श्री शिवसागरजी म० से आयिका की दीक्षा ग्रहण की । वर्तमान में ज्ञान और चारित्र की उत्तरोत्तर वृद्धि करती हुई आप धर्म ध्यान में रत रहती हैं । आपका कार्य स्वाध्याय और जाप करना ही है आप जाप का कार्य विशेष करती रहती हैं । आपका उपदेश भी कथानक के रूप में अच्छा होता है ।