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दिगम्बर जैन साधु
आर्यिका संभवमतोजी
आपका जन्म अजमेर में पन्नालालजी वज के घर पर हुआ | आपकी माताजी का नाम श्रीमती राजमती बाई था । श्रापका नाम हुलासी वाई रखा गया था । माता की धार्मिक भावना का आप पर प्रभाव पड़ा । आपने अपना जीवन धर्म कार्य में व्यतीत किया । किशनगढ़ में आर्यिका श्री के समागम से आपको वैराग्य हुआ र आचार्यश्री शिवसागरजी महाराज का जब चातुर्मास अजमेर में हुआ, तब आपने आर्यिका दीक्षा धारण की ।
आर्यिका विद्यामतोजी
आपका जन्म डेह (नागौर) से उत्तर की ओर लालगढ़ ( वीकानेर ) में वि० सं० १९९२ मिती फाल्गुन वदी १३ को हुआ । आपके पिता श्री नेमचन्दजी बाकलीवाल ने आपके बचपन का नाम शान्तिबाई रखा । वि० सं० २००५ मिती वैसाख कृष्णा ४ को आपका पाणिग्रहण श्री मूलचन्दजी के साथ सम्पन्न हुआ ।
वि० सं० २००८ वैशाख सुदी ६ को कलकत्ता महानगरी से श्री मूलचन्दजी एकाएक कहीं चले गये । कई वर्षों तक उनके न आने के कारण इस संसार से ऊब जाना स्वाभाविक था । कुछ समय पश्चात् आपका परिचय आर्यिका १०५ श्री इंदुमतीजी एवं श्री सुपार्श्वमतीजी के साथ हुआ । इनके साथ आपने ज्ञान की गंगा में स्नानकर आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी महाराज से आर्यिका इंदुमतीजी एवं श्री सुपार्श्वमतीजी के समक्ष, अपार जन समूह के सामने वि० सं० २०१७ मिती कार्तिक सुदी १३ को सुजानगढ़ में दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपका नवीन नामकरण विद्यामतीजी हुआ । -