________________
[ १६
दिगम्बर जैन साधु कालान्तर में आपने घर के भाई वहनों का मोह छोड़ा और घर छोड़कर साधु संघ में ही रहीं। वातावरण के साथ ही आपका जीवन क्रम वदला । संवत् २०१८ में सोकर ( राजस्थान) में आचार्य श्री शिवसागरजी महाराज से आयिका दीक्षा ले ली।
आपने नेमीचन्द्राचार्य कृत गोम्मटसार कर्मकाण्ड को हिन्दी टोका कर जैन समाज का महान उपकार किया है।
आप समय पर लेख आदि भी लिखती रहती हैं वर्तमान में प्राचार्य श्री धर्मसागरजी के संघ के साथ आत्मसाधना में निरत हैं।
आपने लाडनू, कलकत्ता, श्रवणबेलगोलाः शोलापुर, सनावद, प्रतापगढ़ आदि स्थानों पर चातुर्मास किये । आपकी रस परित्याग व्रत पर बड़ी आस्था है। आप जैसी विदुषी माध्वी से ही धार्मिक समाज का अहर्निश कल्याण सम्भव है।
Deacadoo
आर्यिका अरहमतीजी
श्री १०५ आर्यिका अरहमती को लोग गृहस्थावस्था में कुन्दनवाई कहकर पुकारते थे । आपके पिता श्री गुलावचन्द्रजी थे, माता हरिणीवाई थी। वीर गांव की यह एक ही वीरबाला निकनी जिसने लोक जीवन के साथ परलोक के जीवन को भी सम्हाला । आप जाति से खण्डेलवाल और पहाड़िया गोत्रज हैं । यद्यपि आपकी लौकिक धार्मिक शिक्षा नहीं के बराबर ही हुई तथापि गत्संग-धमंधवाग में आपने काफी लाभ उठाया । अापका विवाह लालचन्द्रजी में हुआ था।
वचपन के सामाजिक संस्कार सवल हुए । वैधव्य जीवन में विरक्ति की भावना बढी । मला जिसके ज्येष्ठ मुनिश्री चन्द्रसागरजी, काका प्राचार्य वीर सागरजी, पुत्र मुनिश्री श्रेयान्नसागरजी, हो और जो १५ वर्षों तक १०८ मुनि श्री मुपावसागरजी के धार्मिक वातावरण में बढ़ी हो, यद मला