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दिगम्बर जैन साधु संसार में कैसे रहती ? निदान १०८ मुनि श्री सुपार्श्वसागरजी से संवत् २०२० में क्षुल्लिका-दीक्षा ले ली और अगले वर्ष ही संवत् २०२१ में आचार्य श्री १०८ शिवसागरजी महाराज से शान्ति वीर नगर श्री महावीरजी में आर्यिका दीक्षा भी ले ली।
यद्यपि आप ६५ वर्षों की हो गई पर आपकी धार्मिक चर्या में सावधानी बढ़ती ही जा रही है। आपने श्री महावीरजी, जयपुर, कोटा, उदयपुर, प्रतापगढ़ आदि स्थानों पर चातुर्मास किये । जिह्वा इन्द्रिय को वश में करने के लिए नमक, तेल, दही का त्याग कर रखा है । आपने चारित्र शुद्धि कर्मदहन तीस चौबीसी जैसे व्रत अनेक वार किये हैं।
आर्यिका चन्द्रमतीजी
आपका जन्म आज से ६५ वर्ष पूर्व विक्रम संवत् १९५६ में सतारा जिलान्तर्गत गिरवी नामक , ग्राम में हुआ था। माता पिता ने आपका नाम मानीबाई रखा । आपके पिता श्री फूलचन्द्रजी धार्मिक प्रवत्ति के व्यक्ति थे तथा सराफी की दुकान करते थे। जन्म के समय आर्थिक स्थिति अच्छी सम्पन्न थी। आपकी माता का नाम कस्तूरबाईजी था। मां का वात्सल्य बालापन से ही छिन गया था । जिस समय आपकी माताजी का स्वर्गवास हुआ उस समय आप १२ वर्ष की थी। आपके भाई रामचन्द्रजी अपनी सात वहिनों के बीच अकेले ही थे । दुर्दैव का चक्र चला और आपकी ५ वहिने इस नश्वर संसार से हमेशा के लिए विदा ले गई । आप और आपकी एक बहिन श्री बालुवाई ही सात वहिनों के बीच जीवित रह सकीं।
बालापन से माँ का प्यार छिन.जाने के कारण आपका लाड़-प्यारमयी जीवन पिता की गोद . में व्यतीत हुआ । आपकी स्कूली शिक्षा भी कक्षा ४ तक ही हुई तथा धार्मिक शिक्षा का अभ्यास स्वयं के अध्ययन व मनन से घर पर ही प्राप्त किया।