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दिगम्बर जैन साधु आर्यिका विमलमतीजी
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आपका जन्म ग्राम मुंगावली ( मध्यप्रदेश ) में परवार जातीय श्री रामचन्द्रजी के यहां वि० सं० १९६२ मिती चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हुआ था। आपका विवाह श्री हीरालालजी भोपाल (म० प्र०) निवासी के साथ बाल्य अवस्था में हुआ, मगर दुर्दैववश आपके पति का
असमय में ही निधन हो गया । बारह वर्ष की अल्प आयु में ....., आपका विधवा होना आपके लिए बड़ी भारी विपत्ति थी।
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वाद में आपने विद्याध्ययन वम्बई में किया, १६ वर्ष HARE
की आयु के बाद आप अध्यापिका के पद पर नागौर A
(राजस्थान ) में श्रीमान् सेठ मोहनलालजी मच्छी द्वारा ... .. .. कन्या पाठशाला में नियुक्त हुई । संयोगवश पूज्य १०८ श्री चन्द्रसागरजी मुनि-महाराज विहार करते हुए नागौर पहुंचे। उस समय पूज्य महाराज से आपने द्वितीय प्रतिमा का चारित्र ग्रहण किया ।
आठ वर्ष पाठशाला में पढ़ाने के बाद अध्यापिका पद से त्यागपत्र दे दिया और पूज्य चन्द्रसागरजी महाराज के संघ में विहार करने लगी, तत्पश्चात् संवत् २००० के कार्तिक कृष्णा ५ के रोज क्षुल्लिका दीक्षा ग्रहण की।
सं० २००० फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा के रोज पूज्य श्री १०८ श्री चन्द्रसागरजी महाराज का बड़वानी क्षेत्र में स्वर्गवास हो गया, बाद में आपने पूज्य श्री १०८ वीर सागरजी महाराज से चैत्र शुक्ला त्रयोदशी सं० २००२ को आर्यिका दीक्षा ग्रहण की।
तत्पश्चात् आपने अनेक नगरों एवं ग्रामों में विहार एवं चातुर्मास किया ।
आपका शरीर वायु के प्रकोप से भारी होने के साथ साथ कमजोर भी होने लगा । अत: सं० २०२० के बाद आपने लम्बी दूरी का विहार करने में असमर्थ रहने के कारण नागौर के आसपास व खास नागौर में ही ज्यादा चातुर्मास किये।
कुछ वर्ष पहले आपके गिर जाने से अचानक एक पैर की हड्डी में फेक्चर हो गया जिससे बहुत समय तक वेदना की असह्य पीड़ा रही।