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दिगम्बर जैन साधु
[ १४१ क्षुल्लक श्री सुमतिसागरजी महाराज श्री १०५ क्षुल्लक सुमतिसागरजी का गृहस्थ अवस्था का नाम मदनचन्द्रजी था । आपका जन्म संवत् १९५० में किशनगढ़ ( अजमेर ) में हुआ। आपके पिता श्री फूलचन्द्रजी थे व माता गुलाबबाई थी। आप खण्डेलवाल जाति के भूषण हैं । आपकी लौकिक एवं धार्मिक शिक्षा साधारण ही रही। आपके एक भाई था । आपके दो विवाह हुए। गार्हस्थ जीवन सुखसम्पन्न था।
आपने संवत् २०२२ में मंगसिर कृष्णा एकम को स्वर्गीय १०८ आचार्य वीरसागरजी महाराज से खानियां में क्षुल्लक दीक्षा ली । आपने खानियां व्यावर, अजमेर, जयपुर आदि स्थानों पर चातुर्मास किये।
प्रायिका इन्दुमतीजी
आर्यिकाश्री १०५ इन्दुमतीजी का जन्म सन् १९०५ 4 में हुआ था । मारवाड़ में डेह नामक ग्राम को आपकी जन्म
भूमि बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपके पिता श्री चन्दनमलजी पाटनी थे और माता जड़ावबाई थी। आपने दिगम्बर जैन खण्डेलवाल जाति को विभूषित किया था।
चन्दनमलजी जहां कुशल व्यापारी थे, वहां धर्मात्मा भी थे और उनको गृहिणी जड़ावबाई तो उनसे दो कदम आगे थी। आपके चार पुत्र हुए-ऋद्धिकरण, गिरधारीलाल, केशरीमल, पूनमचन्द्र । आपके तीन पुत्रियां हुई गोपीबाई, केशरीबाई, मोहनीबाई । मोहनीबाई का विवाह चम्पालालजी
सेठी के साथ हुआ तो सही पर छह माह के भीतर ही उनका
- स्वर्गवास हो गया । इससे दोनों परिवार दुःखी हुए। पिता की प्रेरणा पाकर मोहनीबाई जिनेन्द्र पूजन व स्वाध्याय में काफी समय बिताने लगी। आपने परिवार के साथ तीर्थयात्रा की । जब श्री १०८ मुनि-शान्तिसागरजी का संघ सम्मेदशिखरजी की वन्दना के लिए आया तो उनके दर्शनों से आपके विचार और भी अधिक विरागको ओर बढ़े। चूकि आप मुनिश्री के प्रवचन अपने हजार आवश्यक काम छोड़कर भी सुनती थी। इसलिए विषय वासनाओं से विरक्ति वढ़ती ही रही ।
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