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सुन्दर साधना :
आपकी सौम्यमुद्राके दर्शन से ही यह स्पष्ट झलकता है कि आपकी गम्भीर प्रकृति है । सदा मौन पूर्वक आप अपनी साधना करते हैं । ध्यान, सामायिक, षड्यावश्यक पालन में अति उत्साह है । जब कभी बोलने का अवसर आवे तो सुमधुर परिमित एवं हित कारक आदि अनेक गुण आपमें ऐसे हैं जो आत्म कल्याणेच्छुओंके लिए अनुकरणीय है जो व्यक्ति एक वार भी आपके दर्शन कर लेता है उसे यह इच्छा बनी ही रहती है कि मैं ऐसी प्रशान्त मूर्ति के फिर कभी दर्शन करू । रात दिन श्रापका समय पठन-पाठन में व्यतीत होता है । 'जैन गजट' आदि अखबारों में आपके लेख कविता एवं शंकासमाधान प्रकाशित होते रहते हैं ।
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दिगम्बर जैन साधु
श्राप द्वारा रचित पुस्तकों के नाम निम्न प्रकार हैं:
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(१) आचार्य श्री वीरसागरजी महाराज की पूजन (२) संस्कृत शान्तिनाथ स्तोत्र
(३) जीवन्धर की वैराग्य वीणा
(४) चिन्तामरिण पार्श्वनाथ पूजा (५) सत् शिक्षा
(६) पराक्रमी वरांग
(७) लघु समाधि साधन
(८) पंचाध्यायी तत्वार्थसूत्र आदि ।
अनुवाद :
(१) सन्मति सूत्र ( २ ) धर्मरत्नाकर (३) ध्यानंकोष (४) आराधना समुच्चय · (५) कम्मपदि चूरिंग (६) पाँच द्वायिशतिकाऐं (७) द्रव्य संग्रह (5) भक्तामर स्तोत्र ( ९ ) अभ्रदेवकृत श्रावकाचार (१०) श्री योगदेवकी सुखबोध तत्वार्थ वृत्ति एवं भगवती आराधना ।
इस प्रकार आप एक बहुत अच्छे कवि, लेखक, ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी, साधक महान आत्मा हैं । आपका उत्तम क्षमा के दिन जन्म है, आप वास्तव में उत्तम क्षमा के साक्षात् अवतार हैं। क्रोध मात्र तो आपके पास आता ही नहीं ।
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