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दिगम्बर जैन साधु .
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श्री सिद्धसागरजी महाराज
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झाबुआ मध्यप्रदेशमें सेठ चम्पालालजी जैन की गिनती प्रतिष्ठित घरानों में होती है। जिनशासन सेवा और साधु वैयावृत्ति की भावना कुलपरम्परा से ही उन्हें मिली थी। इसे ही वे अपना धर्म मानकर जी रहे थे। पत्नी दोलीबाई भी उन्हें मिली तो लगभग ऐसे ही विचारों की । इस धर्मशील दम्पति को वि० सं० १९६६ भाद्रपद शु० पंचमी को पुत्ररत्न का लाभ हुआ तो नाम रखा उन्होंने मथुरादास । स्कूली पढ़ाई में मथुरादास मैट्रिक से आगे नहीं बढ़ सका पर तत्वज्ञान वैराग्य में वह उतना बढ़ा जहां औरों का पहुंचना
मुश्किल था। निर्ग्रन्थ गुरुओं को 'आहारदान' देते ही उसमें
...... वैराग्य की किरण फूट पड़ी और इन्दौर में पू० प्रा० श्री वीरसागरजी म. से सातवी प्रतिमा के व्रत ग्रहण कर लिये। वि० सं० १९६५ पौष शु० पंचमी को पूज्य आचार्यश्री से ही क्षुल्लक दीक्षा का सुयोग मिल गया । बाल ब्रह्मचारी मथुरादास क्षु० सिद्धसागरजी म० वन गये। यह सब गुरु कृपा का फल है । बहुत बड़े पुण्यात्माओं को गुरु कृपा मिल पाती है। शास्त्रों का अध्ययन करके आपने कुछ रचनाएँ भी की हैं । दीक्षाकाल से लेकर अब तक निम्नलिखित स्थानों में चातुर्मास करके धर्मामृत की वर्षा की है
इन्दौर, कचनेर, कन्नड़, कारंजा, सज्जनगांव, झालरापाटन, रामगंजमंडी, नैनवां, सवाईमाधोपुर, नागौर, सुजानगढ़, नरायना, दूदू, मौजमाबाद, केकड़ी, टोडारायसिंह, मदनपुरा, जयपुर । मौजमाबाद में तेरह चातुर्मास कर चुके हैं तथा सन् ६६ से सन् ७३ छोड़कर मौजमाबाद में ही विराजमान हैं। वर्तमान में ग्राम मौजमाबाद में चातुर्मास कर रहे हैं यह अतिशय क्षेत्र है यहाँ एक मन्दिर तीन शिखर का विशाल मन्दिर है जिसमें भूमिके नीचे २ भौंहरे ( तलघर ) हैं जिसमें अतीव सुन्दर मनोरम मूर्तियां विराजमान हैं । मन्दिर को देखने हेतु दूर २ से यात्रीगण आते हैं । बाजार में एक.. छोटा मन्दिर है तथा गांवके वाहर एक नशियांजी हैं जो अपनी प्राकृतिक छटा से आकर्षक केन्द्र है । यहाँ पर धर्मानुरागी श्रावकों के ४०-५० घर हैं यहां जिनमन्दिरजी में बड़ा भारी शास्त्र भण्डार है। करीब-करोब दिगम्बर जैन वांगमयके सभी ग्रन्थ उपलब्ध हैं।