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मापिका चन्द्रवती माताजी
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चारित्र चक्रवर्ती प्राचार्य शान्तिसागरजी महाराज ने केशरवाई को दीक्षा देते समय कहा था कि नमूना तो बनो। उस समय तक कोई स्त्री दीक्षित नहीं हुई थी। परमपूज्य आचार्य महाराज वारम्बार प्रार्थना करने पर भी दीक्षा नहीं देते थे परन्तु उन्होंने केशर वाई को सत्पात्र विचार कर एक ही दिन के बाद दीक्षा Me देकर कृतार्थ किया।
संयम के सुवास से समलंकृत सत्य एवं श्रद्धा की मूर्तिमान स्वरूपा परमपूज्य आयिका श्रेष्ठ माता चन्द्रवतीजी के गृहस्थावस्था का नाम केशर बाई था।
वे वाल्हे गांव (जिला-पूना) की हैं । उनका विवाह तेरह वर्ष की अवस्था में हुआ था। उनका शरीर बड़ा बलशाली था। जो भी उनके सुदृढ़ शरीर को देखता था वह उससे प्रभावित..हो जाता था।
इन्होंने प्रारम्भ में वम्बई के श्राविकाश्रम में जाकर शिक्षा ग्रहण की। उसकी संचालिका महिलारत्न मगनवाई और उनकी सहायिका कक्यूबाई और ललितावाई थीं। .
पर पिताजी ने इन्हें घर पर ही बुलाकर पं० नानाजी नाग के तत्वावधान में इन्हें शिक्षा दिलाई।
माताजी को व्रत उपवास करने में बड़ा आनन्द प्राया करता था। उन्होंने चारित्र शुद्धि व्रत को, जिसमें १२३४ उपवास होते हैं, किया था। इन्होंने अनेक प्रकार के तप किये।
पूज्य माताजी का जन साधारण पर उनकी पवित्रता के कारण बड़ा प्रभाव पड़ता है। दिल्ली के सुप्रसिद्ध नये मन्दिरजी में शुभवर्णो सहस्रकूट चैत्यालय का निर्माण इनकी और इनके साथ रहने वाली माताजी विद्यामतीजी की प्रेरणा से हुआ।