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जैन कुलभूषण-धर्म परायण श्री लाला श्यामलालजी जैन ठेकेदार दिल्ली
- संक्षिप्त जीवन परिचय
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जीवन को सुख शांतिमय बनाने का मुख्य साधन धर्म है। धर्म के कारण यह प्राणी संसार के कष्टों को दूरकर सच्ची शांति प्राप्त कर सकता है । परिशुद्ध जाति, कुल उत्तम, वंश निरोग, शरीर दीर्घायुष्य, परोपकार निरत बुद्धि, देवशास्त्र गुरु की भक्ति धर्म वद्धि की चिन्ता आदि बातें मनुष्य को पूर्व संस्कार से प्राप्त होती हैं और गुरुजनों के आशीर्वाद और सम्यक् पुरुषार्थ से उत्तम गुणों की वृद्धि होती है ।
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____ धर्म का पालन दो प्रकार से होता है मुनिधर्म और गृहस्थ धर्म । जैसे तप त्याग और आध्यात्म विकास का साधन मुनिधर्म है ऐसे ही दान शील पूजा स्वाध्याय आदि का साधन गृहस्थ धर्म है। मुनिधर्म का प्रधान लक्ष्य मोक्ष पुरुषार्थ है। उसीप्रकार गृहस्थ आश्रम में रहकर धर्म अर्थ काम इन तीन पुरुषार्थों को भली प्रकार पालन किया जा सकता है। सफल जीवन धर्म यश और सुख के पालन करने से ही हो सकता है।
दिल्ली महानगरी एक महत्व पूर्ण स्थान है। व्यापारिक नगरों में मुख्य तथा सांस्कृतिक गति विधियों का केन्द्र है। यहां पर जैन धर्म पालन करने वाले. श्रावकों में अनेक प्रतिभाशाली उदार और लोक सेवी धनी परोपकारी भावना सम्पन्न राज्य मान्य स्त्री पुरुष हुए हैं। जिनके द्वारा देश धर्म और समाज की बड़ी सेवा हुई है। स्वनाम धन्य सेठ सुगनचन्दजी जिन्होंने अनेक मन्दिरों का निर्माण कराया, हस्तिनापुर में भगवान शान्तिनाथ का, दिल्ली में कला और सौन्दर्य का प्रतीक अत्यन्त भव्य भगवान आदिनाथ का नया मन्दिर निर्माण कराया जिसकी कारीगरी और पच्चीकारी का काम