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[ 8 ] परम पूज्य चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शान्तिसागरजी महाराजका संघ सहित १९३० में दिल्लीमें पदार्पण हुआ। आपने उनको आहार देने के लिए अशुद्ध जल का त्याग कर दिया और समस्त मुनिराजों की शक्तिभर वैयावत्ति की जिससे आपको अधिक आनंद आया और प्राचार्य श्री के उपदेश से ठेकेदारी छोड़ दी। गृहस्थ जीवन में चार विवाह किये दो से कोई सन्तान नहीं हुई। तीसरी धर्मपत्नी से श्री श्यामलालजी और एक कन्या उत्पन्न हुई। कन्या का असमय में ही स्वर्गवास हो गया।
चौथी धर्मपत्नी से दस सन्तानें हुई ६ लड़कियां और चार लड़के उत्पन्न हुये। इनमें से एक बहिन की मृत्यु हो गई । शेष सभी अपने पिताजी के गौरव और प्रतिष्ठा के अनुकूल धार्मिक कार्यों में उत्साह से भाग लेते हैं और दिल्ली के सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं को देख रेख करते हैं।
लाला महावीरप्रसादजी ठेकेदार ने सम्मेदशिखर, गिरनार, आदि तीर्थो की सपरिवार वन्दना की महावीरजी स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेन ठहरती नहीं थी। आपने प्रतिमाह २५-३० टिकटें लेकर और सरकार को प्रेरणा देकर महावीरजी पर एक्सप्रेस ट्रेन ठहराने का पूर्ण प्रयत्न किया । जिसमें आपने पूर्ण सफलता प्राप्त की । आप समाज के पंच वर्षों तक रहे । जैन मित्र मंडल जो दिल्ली को सुप्रसिद्ध साहित्य संस्था है उसके भी अध्यक्ष रहे।
. भारतवर्षीय दि० जैन अनाथ रक्षक सोसायटी के अन्तर्गत जो जैन बाल आश्रम है उसे हिसार से यहां लाने और उसको समुचित व्यवस्था करने में आपका पूर्ण सहयोग रहा।
जब आप अस्वस्थ हुए और बीमारी बढ़ती गई तो आपके मन में आचार्य रत्न श्री देशभूषणजी महाराज से जो उस समय दिल्ली में विराजमान थे। उनसे धर्म उपदेश सुनने का भाव उत्पन्न हुआ आचार्य श्री ने घर जाकर आपसे संबोधन और धर्मोपदेश दिया। ऐसा सौभाग्य विरले ही जनों को प्राप्त होता है । १० जून १९५७ में समाधिमरण पूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया।
दिल्ली समाज के लोकोपकारी पुरुषों में आप अग्रणी थे । सौभाग्य की बात है कि आपके सभी पुत्र और पुत्रियां इसीप्रकार धार्मिक कार्यों में भाग लेकर मुक्तहस्त से सामाजिक संस्थाओं को दान देते हैं तथा देवगुरु शास्त्र के अनन्य भक्त हैं ।
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