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प्रा० श्री कुथुसागरजी महाराज
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महर्षि प्रातःस्मरणीय आचार्य श्रीकुन्थुसागरजी महाराज आप एक परम प्रभावक वीतरागी, विद्वान आचार्य थे। आपकी जन्मभूमि कर्णाटक प्रान्त है जिसे पूर्व में कितने ही महर्षियों ने अलंकृत कर जैनधर्मका मुख उज्ज्वल किया था। इसलिए "कर्णेषु अटतीति” सार्थक नाम को पाकर सबके कानोंमें गूंज रहा है।
- कर्णाटक प्रांत के ऐश्वर्यभूत बेलगांव जिले में ऐनापुर . नामक सुन्दर नगर है । वहां पर चतुर्थकुल में ललामभूत अत्यन्त शांत स्वभाव वाले सातप्पा नामक श्रावकोत्तम रहते थे। आपकी
धर्मपत्नी साक्षात् सरस्वती के समान सद्गुणसम्पन्न थी इसलिए
- सरस्वती के नाम से ही प्रसिद्ध थी। सातप्पा व सरस्वती दोनों अत्यन्त प्रेम व उत्साह से देवपूजा व गुरुपास्ति आदि सत्कार्य में सदा मग्न रहते थे। धर्मकार्य को वे प्रधानकार्य समझते थे उनके हृदय में आंतरिक धार्मिक श्रद्धा थी। श्रमती सौ. सरस्वती ने वीर संवत् २४२० में एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। इस पुत्र का जन्म कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया 'को हुआ । माता पिता ने पुत्र का जीवन सुसंस्कृत हो इस सुविचार से जन्म से ही आगमोक्त संस्कारों से संस्कृत किया । जातकर्म संस्कार होने के बाद शुभमुहूर्त में नामकरण संस्कार किया जिसमें इस पुत्र का नाम रामचन्द्र रखा गया । वाद में चौलकर्म, अक्षराभ्यास, पुस्तकग्रहण आदि आदि संस्कारों से संस्कृत कर सद्विद्या का अध्ययन कराया । रामचन्द्र के हृदय में वाल्यकाल से ही विनय शील व सदाचार आदि भाव जागृत हुए थे। जिसे देखकर लोग आश्चर्ययुक्त व संतुष्ट होते थे। रामचन्द्र को वाल्यावस्था में ही साधु संयमियों के दर्शन की उत्कट इच्छा रहती थी। कोई साधु ऐनापुरमें जाते तो यह वालक दौड़कर उनकी वन्दना के लिए पहुंचता था । वाल्यकाल से ही उसके हृदय में धर्म के प्रति अभिरुचि थी। सदा अपने सहमियों के साथ तत्त्वचर्चा करने में ही समय विताता था। इस प्रकार सोलह वर्ष व्यतीत हुए । अब माता पिता ने रामचन्द्र को विवाह कराने का विचार प्रगट किया । नैसर्गिक गुण से प्रेरित होकर रामचन्द्र ने विवाह के लिए निषेध किया एवं प्रार्थना की कि पिताजी!