________________
दिगम्बर जैन साधु
[७६ यह कथा उन्हें बड़ी प्रिय थी।
___ नेमिसागरजी ने ऐलक दीक्षा गोकाक के मन्दिर में ली थी और वहाँ मूलनायक नेमिनाथ भगवान की मूर्ति थी । इसलिए महाराज ने इनका नाम नेमिसागर रखा । पहले ऐलक दीक्षा ली और पश्चात् मुनिदीक्षा अंगीकार की।
कटनी के चातुर्मास में महाराज ने सभी साधुओं के पठन पाठन की योजना बनाई और ललितपुर में पठन पाठन शुरु हुआ । नेमिसागर मुनिराज विविध प्रकार के आसन लगाकर ध्यान करते थे। उन्हें ध्यान में ही आनन्द आता था । संकल्प विकल्प त्यागने से शांति मिलती है । ऐसा वे कहा करते थे। • नेमिसागर महाराजः कहा करते थे
अनुभव शास्त्र तथा व्यवहार इन तीनों को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिये। जैनधर्म की प्रभावना के सम्बन्ध में आचार्य महाराज कहा करते थे
__ रुचिः प्रवर्तते यस्य, जैन शासन भासते।
हस्ते तस्य स्थिता मुक्तिरिति सूत्रे निषद्यते ।। जिसके मन में जिन शासन की प्रभावना की भावना है उसके हाथ में मुक्ति है । महाराज नेःवम्बई के पास वोरीवकर में प्राचार्य शान्तिसागरजी महाराज की पावन स्मृति में स्थान बनाया
और वहां. उत्तुग. भरत बाहुबलि तथा अन्य तीर्थंकरों की मनोज्ञ मूर्तियां स्थापित.कराई ।जो भव्यः जीवों को वीतरागता की शिक्षा देती हैं और जिनसे जैन शासन की प्रभावना होती है.।
का