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आचार्य श्री नमिसागरजी महाराज
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पूज्य आचार्यश्री का जन्म विक्रम १९४५ ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्थी मंगलवार तदनुसार ता० २६ मई सन् १८८८ को दक्षिण प्रान्त के शिवपुर नगर जिला बेलगांव में हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री यादवराय तथा मातेश्वरी का नाम श्रीमती कलादेवी था। ये दक्षिण प्रान्तीय प्रसिद्ध जैन क्षत्रिय पंचम जाति के व्यापारी थे। श्री यादवरायजी के कुल तीन संतान उत्पन्न हुई,, जिनमें पहली. संतान कुछ दिन जीवित रहकर चिर निद्रित हो गई। द्वितीय. पूज्य आचार्य महाराज हैं, जिनका तत्कालीन नाम होनप्पा रखा गया । इनके पीछे प्रायः दो ढाई वर्ष बाद एक छोटा भाई और हुआ । ये दो वर्ष के भी पूर्ण न होने पाये थे कि इनके पिताजी दिवंगत हो गये और उनकी छत्र-छाया इनके ऊपर से सदैव के लिये उठ गई। उस समय इनके छोटे भाई की अवस्था प्रायः ३ मास की थी इनकी विदुषी माता ने दोनों का लालन-पालन किया तथा शिक्षित बनाने के लिये
उसी गांव की राजकीय शाला में बैठा दिया। दो तीन कक्षा तक ही प्रारम्भिक शिक्षा ले पाये थे कि अभाग्यवशत् विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा और इनकी माताजी का भी स्वर्गवास हो गया। उस समय इनकी आयु १२ वर्ष की होगी, घर में कोई बड़ा न होने से खर्च का सारा वोझ इन्हीं के ऊपर आ पड़ा, समस्या बड़ी विकट थी, आजीविका का और कोई उपाय न था, अतः इच्छा न होते हुए भी पढ़ाई का काम छोड़ना पड़ा। फिर भी अपने भाई को पढ़ाने का पूरा ध्यान रखा।
इनका पैतृकं व्यापार वर्तनों की दुकान का था । अपने पूर्वजों की छोड़ी हुई पर्याप्त जमीन भी थी कुछ समय तक तो अभ्यास न होने से कुछ कष्ट रहा, पर बाद में अपनी कुशलता से उन दोनों कार्यों को बड़ी सावधानी से सम्भाल लिया।