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- दिगम्बर जैन साधु
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शरीर त्याग :
फाल्गुन शुक्ला १५ के दिन बारह बजकर बीस मिनट पर गुरुदेव ने इस विनाशशील शरीर को छोड़कर अमरतत्व प्राप्त कर लिया । यह सन् १९४५ की २६ फरवरी का दिन था । इस
अष्टका की समाप्ति थी । दिन भी चन्द्रवार था । परमाराध्य गुरुदेव चन्द्रसागर ने पूर्ण चन्द्रिका चन्द्रवार के दिन सिद्धक्षेत्र पर होलिका की आग में अपने कर्मो को शरीर के साथ फूंक दिया। समस्त भक्तजन विलखते रह गये, सबकी आँखें भर आई ।
चरण वन्दना :
दृढ़ तपस्वी, शीर्षमार्ग के कट्टर पोषक, वीतरागी, परम विद्वान्, निर्भीक, प्रसिद्ध उपदेशक, श्रागम मर्मस्पर्शी, अनर्थ के शत्रु, सत्य के पुजारी, मोक्ष मार्ग के पथिक, संसारी प्राणियों के तारक, आत्मबोधी, स्वपर उपकारी, अपरिग्रही, तारण तरण, सन्तापहरण स्व० गुरुदेव के चरण कमलों में शत-शत वन्दन ! शत-शत वन्दन ! !