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दिगम्बर जैन साधु
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अपनी गति नहीं बदली । यश और वैभव को ठुकराने वाले क्या कभी विरोधियों की परवाह कर सकते हैं, कभी नहीं ।
महाराज श्री हमेशा ही सत्य, सिद्धान्त और श्रागमपथ के अनुयायी रहे । सिद्धान्त के आगे आप किसी को कोई महत्व नहीं देते थे । यदि शास्त्र की परिपालना में प्राणों की भी आवश्यकता होती तो आप निःसंकोच देने को तैयार रहते थे । जिनधर्म के मर्म को नहीं जानने वाले, द्वेषाग्नि दग्ध अज्ञानियों ने महाराजश्री पर वर्णनातीत अत्याचार किए जिन्हें लेखनी से लिखा भी नहीं जा सकता । परन्तु धीर वीर मुनिश्री ने इतने घोरोपसर्ग आने पर भी न्यायमार्ग एवं अपने सिद्धान्त को नहीं छोड़ा | सत्य है "न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीरा" घोरोपसर्ग आने पर भी धीर-वीर न्यायमार्ग से विचलित नहीं होते । आपत्तियों को दृढ़ता से सहन करने पर ही गुणों की प्रतिष्ठा होती है । गुरुदेव ने घोर आपत्तियों का सामना किया जिससे ग्राज भी उनका नाम अजर अमर है । के
मारवाड़
सुधारक :
जिस समय हमारे श्रावक गरण चारित्र से च्युत हो धर्मविहीन बनते जा रहे थे । उस ' समय आपने जैन समाज को धर्मोपदेश देकर सन्मार्ग में लगाया । श्राप अनेकों ग्रामों और नगरों में भ्रमण करके अपने वचनामृत के द्वारा धर्मपिपासु भव्यप्राणियों को सन्तुष्ट करते हुए राजस्थान प्रान्तके सुजानगढ़ नगर में पधारे । वि० सं० १६६२ में आपने यहां चातुर्मास किया। इस मारवाड़ देश की उपमा आचार्यों ने संसार से दी है । यहां उष्णता भी अधिक है तो ठण्ड भी अधिक पड़ती है । - गर्मी के दिनों में भीषण सूर्य किरणों से तप्तायमान धूलि से ज्वाला निकलती है । आपने जिस समय राजस्थान में पदार्पण किया उस समय यहाँ के निवासी मुनियों की चर्या से अनभिज्ञ थे, खान-पान अशुद्ध हो चला था । आपने अपने मार्मिक उपदेशों से श्रावकों को सम्बोधित किया, उनके योग्य.. आचार से उन्हें अबगत कराया, आपके सदुपदेश से कई व्रती वने । मारवाड़ प्रान्त के लोगों के सुधार का श्रेय आपको ही है ।
डेह में प्रभावना :
लाडनू से मंगसिर सुदी चतुर्दशी को आचार्यकल्पश्री ने विहार किया। साथ में थे. मुनि निर्मलसागरजी, ऐलक हेमसागरजी, क्षुल्लक गुप्तिसागरजी और ब्र० गौरीलालजी ।
मिती पौष कृष्णा दूज वि० सं० १९९२ के प्रातः ९ वजे मुनिसंघ का डेह में प्रवेश हुआ । सारा ग्राम मानो उलट पड़ा, विशाल शोभायात्रा निकाली गई । जागीरदार का सरकारी लवाजमा तथा बैण्ड जुलूस में सम्मिलित था । लगभग २००० स्त्री पुरुष और बच्चे सोत्साह जय जयकार