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दिगम्बर जैन साधु कमण्डलु लेकर शहर में जाने लगे । श्रावक चिन्तित हो गए क्या होगा ? परन्तु महाराजश्री के मुखमण्डल पर अपूर्व तेज था । आप सिंह के समान निर्भय और शान्त भाव से चले जा रहे थे । जब अंग्रेज साहब की कोठी के पास से निकले तो बाहर खड़ा साहब इनकी शान्त मुद्रा को देखकर नतमस्तक हो गया, इनकी भूरि भूरि प्रशंसा करने लगा । सत्य हो है महापुरुपों का प्रभाव अपूर्व होता है। रत्नत्रय की मूर्तिमन्त प्रतिमा :
वास्तव में मुनिराज श्री चन्द्रसागरजी को देखकर रत्नत्रय की मूर्तिमन्त प्रतिमा को देखने का सन्तोष प्राप्त होता था । महाराजश्री का जीवन हिमालय की तरह उत्तुग, सागर की तरह गम्भीर, चन्द्रमा की तरह शीतल, तपस्या में सूर्य की तरह प्रखर, स्फटिक की तरह अत्यन्त निर्दोष, आकाश की तरह अन्तर्वाह्य खुली किताब, महाव्रतों के पालन में वज्र की तरह कठोर, मेरु सदृश अडिग एवं गंगा की तरह अत्यन्त निर्मल था।
वे साधुओं में महासाधु, तपस्वियों में कठोर तपस्वी, योगियों में आत्मलीन योगी, महाव्रतियों में निरपेक्ष महाव्रती और मुनियों में अत्यन्त निर्मोही मुनि थे । वास्तव में ऐसे निर्मल, निःस्पृह और स्थितिप्रज्ञ साधुओं से हो धर्म की शोभा है । विश्व के प्राणी ऐसे ही सत्साधुओं के दर्शन, समागम और सेवा से अपने जीवन को धन्य वना पाते हैं ।
पूज्य तरणतारण महामुनिराज श्री चन्द्रसागरजी महाराज अपने दीक्षा गुरु परम पूज्य श्री १०८ आचार्य शान्तिसागरजी महाराज की शिष्य परम्परा में और साधु जीवन में न केवल ज्येष्ठता में श्रेष्ठ थे वरन् श्रेष्ठता में भी श्रेष्ठ थे। उनके पावन पद विहार से धरा धन्य हो गई। सच्चा अध्ययन जगमगा उठा और आत्महितैषियों को आत्मपथ पर चलने के लिए प्रकाशस्तम्भ मिल गया। वास्तव में वे लोग महाभाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसे लोकोत्तर असाधारण महानतपस्वी सच्चे आगमनिष्ठ साधु के दर्शन का सुयोग मिला।
आपको यही भावना रहती थी कि "सर्वे भवन्तु सुखिनः" । आप संसारो जीवों को धर्माभिमुख करने हेतु सतत् प्रयत्नशील रहते थे। गुरुदेव को तपस्या केवल आत्मकल्याण के लिए ही नहीं अपितु इस युग की धर्म और मर्यादा का विरोध करने वाली दूषित पापवृत्तियों को रोकने के लिए भी थी । मानव की पापवृत्तियों को देखकर उनका चित्त आशंकित था। महाराजश्री ने इनका : नाश करने का प्रयत्न असोम साहस और धैर्य के साथ किया। धर्मभावनाशून्य मूढ़ लोगों ने इनके पथ में पत्थर वरसाने में कोई कमी नहीं रखो परन्तु मुनिश्री ने एक परम साहसो सैनानी की भाँति ,