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दिगम्बर जैन साधु
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कर रहे थे । साधुओं ने पहले श्री पार्श्वनाथ नसियाँजी के दर्शन किए, अनन्तर प्राचीन मन्दिर और नवीन मन्दिर के दर्शन करते हुए संघ श्री दिगम्बर जैन पाठशाला में पहुंचा । श्राचार्य कल्पश्री के उद्बोधन के बाद सभा विसर्जित हुई ।
सैकड़ों वर्षों से इस प्रदेश में दिगम्बर जैन साधुत्रों का आगमन न होने से सब लोग साधुओं की क्रियाओं से अनभिज्ञ थे। संघ की चर्या देख देखकर सब लोग आश्चर्यान्वित होते थे । पूज्य चन्द्रसागरजी महाराज ने श्रावकों की शिथिलता और अशुद्ध खानपान को भांप लिया था श्रतः आपके उपदेश का विषय प्रायः यही होता था । श्रापके उपदेशों से प्रभावित होकर और सच्चा मार्ग ज्ञात कर अनेक श्रावक श्राविकाओं ने दूसरी प्रतिमा के व्रत ग्रहण किए, जिनमें मोहनीबाई ( श्रधुना आर्यिका इन्दुमतीजी ) व इनके भाई-भाभी भी थे । अनेकानेक ने मद्य मांस का त्याग किया। रात्रि भोजन छोड़ा तथा जल छान कर पीने का नियम लिया । यों कहना चाहिये कि आपके आगमन से डेह वासियों का जीवन सर्वथा परिवर्तन हो गया सबके सब शुद्ध खान पान और नियमों की ओर आकृष्ट हुए ।
उत्कृष्ट धर्म प्रचारक :
गुरुओं की गरिमा गाथा गाई नहीं जा सकती । आपके वचनों में सत्यता श्रौर मधुरता, हृदय में विवक्षा, मन में मृदुता, भावना में भव्यता, नयन में परीक्षा, बुद्धि में समीक्षा, दृष्टि में विशालता, व्यवहार में कुशलता और अन्तःकरण में कोमलता कूट कूट कर भरी हुई थी । इसलिये आपने मनुष्य को पहचान कर अर्थात् पात्र की परीक्षा कर व्रत दिये, जन जन के हृदय में संयम की सुवास भरी ।
गगन का चन्द्र अन्धकार को दूर करता है । परन्तु चन्द्रसागरजी रूपी निर्मल चन्द्र ज्ञानियों के मन मन्दिर में ज्ञान का प्रकाश फैलाता था । आपने धर्मोपदेश देकर जन जन का अज्ञान दूर किया । देश देशान्तरों में विहार कर जिनधर्म का प्रचार किया । उनका यह परमोपकार कल्पान्त काल तक स्थिर रहेगा । उनके वचनों में प्रोज था । उपदेश की शैली अपूर्व थी । मधुर भाषणों से उनके जैन सिद्धान्त के अभूतपूर्व मर्मज्ञ होने की प्रखर प्रतिभा का परिचय स्वतः ही मिलता था आपके सरल वाक्य रश्मियों से साक्षात् शान्ति सुधारस विकीर्ण होता था जिसका पान कर भक्त जन झूम उठते और अपूर्व शान्ति लाभ लेते थे ।
अपूर्व मनोबल :
महाराजश्री की वृत्ति सिंहवृत्ति थी अतएव उनके अनुशासन तथा नियंत्रण में माता का लाड न था बल्कि सच्चे पिता की सो परम हितैषिणी कट्टरता थी । जिसके लिये उन्होंने अपने जीवनोपार्जित यश की बलि चढ़ाने में जरा सा भी संकोच नहीं किया ।