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दिगम्बर जैन साधु दक्षिण भारत के प्रसिद्ध नगर बेलगांव जिले के चिकोडी तालुका में भोजनाम है। भोजग्राम के समीप लगभग चार मील की दूरी पर विद्यमान येलुगल गांव में नाना के घर आषाढ़ कृष्णा ६ संवत् १९२९ सन् १८७२ बुधवार की.रात्रि को जन्म हुआ । ज्योतिषी से जन्म पत्रिका बनवाने पर उसने बताया था कि यह बालक अत्यन्त धार्मिक होगा, जगत भर में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा और. संसार के मायाजाल से दूर रहेगा।
पिता भीमगौड़ा और माता सत्यवती के ये तीसरे पुत्र थे इसीसे मानो प्रकृति ने इन्हें । रत्नत्रय और तृतीय रत्न सम्यक्चरित्र का अनुपम आराधक बनाया। आदिगौडा और देवगौडा नामके आपके दो बड़े भाई थे । कुमगौडा आपके अनुज थे । बहिन का नाम कृष्णा बाई था। इनके . शान्त भावों के अनुरूप इन्हें सातगौड़ा कहते थे । गौड़ा शब्द भूमिपति-पाटिल का द्योतक है।
आचार्य श्री के जीवन पर उनके माता-पिता की धार्मिकता का बड़ा प्रभाव था। माता सत्यवती अत्यधिक धार्मिक थी । अष्टमी चतुर्दशी को उपवास करती तथा साधुओं को आहार देती थीं। बहुत शान्त तथा सरल प्रकृति की थीं। व्रताचरण, परोपकार, धर्मध्यान उनके जीवन के मुख्य . अंग थे । पिता भीमगौडा प्रभावशाली, बलवान, रूपवान प्रतिभाशाली ऊँचे पूरे क्षत्रिय थे। उन्होंने १६ वर्ष पर्यन्त एक बार ही भोजन पानी के नियम का निर्वाह किया था। १६ वर्ष पर्यन्त ब्रह्मचर्य व्रत रखा था । उन जैसा धर्माराधना पूर्वक सावधानी सहित समाधिमरण होना कठिन है । प्राचार्य महाराज के बड़े भाई देवगौडा पाटिल ने भी दिगम्बर साधुराज का पद ग्रहण किया था। उन्हें वर्धमानसागर महाराज कहते थे। छोटे भाई कुमगौडा भी दीक्षा लेने का विचार रखते थे पर असमय में ही वे काल कवलित हो गए। ऐसे धर्मनिष्ठ परिवार में चरित्रनायक ने जन्म लिया। सातगौडा . बचपन से ही निवृत्ति की ओर बढ़ते गए। बच्चों के समान गन्दे खेलों में उनकी कोई रुचि नहीं.. थी । वे व्यर्थ की बात नहीं करते थे। पूछने पर संक्षेप में उत्तर देते थे। लौकिक आमोद-प्रमोद से सदा दूर रहते थे, धार्मिक उत्सवों में जाते थे । घर में बहिन कृष्णा बाई की शादी में तथा छोटे भाई कुमगौडा की शादी में सम्मिलित नहीं हुए थे । वे वीतराग प्रवृत्ति वाले थे। बाल्यकाल से ही वे ' शान्ति के सागर थे।
"मुनियों पर उनकी बड़ी भक्ति थी । वे अपने कन्धे पर एक मुनिराज को बैठाकर वेदगंगा तथा दूध गंगा नदियों के संगम के पार ले जाते थे । वे कपड़े की दुकान पर बैठते थे, मुख्य कार्य छोटा भाई करता था। छोटे भाई की अनुपस्थिति में वे ग्राहकों से कहते-"कपड़ा लेना है तो मन से चुन लो, अपने हाथ से नाप कर फाड़. लो और बही में लिख दो।" इस प्रकार उनकी निस्पृहता थी। वे कुटुम्ब के झंझटों में नहीं पड़ते थे। उनका आत्मबल अद्भुत था। उन्होंने माता-पिता की खूब .