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दिगम्बर जैन साधु
[ ५५ सेवा की और उनका समाधिमरण कराया किन्तु उनके स्वर्गारोहण के बाद भी उनके नेत्रों में अश्रु नहीं थे । उनका मनोबल महान् था, वे वैराग्यमूर्ति थे। .
___ जब उनके विवाह का प्रसंग आया तो उन्होंने कहा “मी ब्रह्मचारी राहणार" मैं ब्रह्मचारी रहूंगा । इन शब्दों को सुनते ही माता-पिता के नेत्रों में अश्रु आ गए। पिताश्री ने कहा- माझा जन्म तुम्हो सार्थककेला" बेटे । तुमने हमारा जीवन और जन्म कृतार्थ कर दिया।
"महाराज के परिणाम छोटी अवस्था में ही मुनिदीक्षा लेने के थे परन्तु माता-पिता ने आग्रह किया कि वेटा। जब तक हमारा जीवन है तब तक तुम दीक्षा न लेकर धर्मसाधन करो। इसलिये वे घर में रहे।
माता पिता के स्वर्गारोहण के बाद ४१ वर्ष की अवस्था में आपने मुनिदीक्षा के लिये दिगम्बर साधु देवप्पा स्वामी के पास जाकर याचना की, विनय की। गुरुदेव ने दिगम्बर मुनि की दीक्षा न देकर इनके कल्याणार्थ विक्रम संवत् १९७२ जेठ सुदी तेरस सन् १९१५ को इन्हें पहले क्षुल्लक दीक्षा दी । नाम शान्तिसागर रखा था । इन्होंने कोगनोली गांव में क्षुल्लकरूप में प्रथम चातुर्मास किया। उस समय ये तपसाधना में विशेष संलग्न थे । कोगनोली में मन्दिर वेणी में वे ध्यान हेतु बैठे थे कि एक छह हाथ लम्बा सर्प मन्दिर में घुसा और उसने यहां-वहां घूमने के बाद महाराज के शरीर पर चढ़ना प्रारम्भ किया और वह उनके शरीर पर लिपट गया। वहां मन्दिर में दीपक जलाने को उपाध्याय घुसा और उसकी निगाह सर्प पर पड़ी तो वो घबरा कर भागा। इस समाचार को सुनकर बहुत लोग वहां एकत्र हो गए। वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहे थे, क्योंकि गड़बड़ी के कारण सर्प कहीं काट देगा तो अनर्थ हो जाएगा। बहुत समय के बाद सर्प धीरे-धीरे उतरा और बाहर चला गया। प्रतीत होता है कि वह यमदूत महाराज की परीक्षा लेने आया था कि इनमें धैर्य, निर्भीकता तथा स्थिरता कितनी है । इस परीक्षा में महाराज सुस्वर्ण निकले । इन समाचारों से सर्वत्र महाराज की महिमा का प्रसार हो गया।
यों भी महाराजश्री के जीवन में अनेक उपसर्ग आए। परन्तु 'यथा नाम तथा गुण" आपने सवको समभाव से सहन किया । धौलपुर राजा खेडा में तो छिद्रि ब्राह्मण गुण्डों सहित नंगी तलवारें लेकर मारने आ गया था, उसको भी आपने क्षमा प्रदान की। सर्पराज से भी अनेक वार साक्षात्कार हुआ । शेर से भी मुलाकात हुई। एक बार असंख्य चीटियों ने आपके शरीर को अपना भोज्य वनाया फिर भी आप सामायिक में लीन रहे । एक चींटी आपके पुरुष लिंग से चिपट कर काटती रही, खून बहता रहा परन्तु आप ध्यान से विचलित नहीं हुए।