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________________ जननेन्द्रिय-निग्रह इसके पूर्व कदापि न हो । विवाह के बाद भी बी-समागम ब्रह्मचर्य के नियमानुसार ही होना चाहिए।. शास्त्र की आज्ञा है कि एक महीने में केवल ऋतुकाल में एक अथवा दो रात्रि मात्र में आवश्यक सन्तान की उत्पत्ति के हेतु स्त्रीसङ्गम यज्ञ की भाँति करना चाहिए। गर्भावस्था में स्त्री-सङ्गम मातृ-सङ्गम के पाप के तुल्य है क्योंकि उसके कारण सन्तति भी कामासक्ति का स्वभाव लेकर उत्पन्न होती है। गर्भावस्था के समय की, विशेषकर माता की, भावना का प्रभाव गर्भ की सन्तति पर प्रबल भाव में पड़ता है। और शिशु-प्रसव के १ वर्ष के भीतर, स्त्रो अथवा पुरुष के शरीर की अस्वस्थता आदि काल, और निन्दित तिथि ( अमावास्या, अष्टमी, पूर्णिमा और चतुर्दशी, मनु० अ० ४ श्लो० १२६) आदि में स्त्री-सहवास कदापि नहीं करना चाहिए। कोई प्रतिपदा, षष्ठो, एकादशी और द्वादशी तिथि को भी सहवास के लिये वर्जित कहते हैं तथा व्यतिपात, ग्रहण,राम-नवमी, शिव-रात्रि, जन्माष्टमी आदि पर्व,श्राद्ध-दिवस, संक्रान्ति, रविवार दिन, और नक्षत्रों में आश्लेषा, मघा, मूल, कृत्तिका, ज्येष्ठा, रेवती, तीनों उत्तरा को भी वर्जित कहते हैं। मन्दिर में, रास्ते में, श्मशान में, औषधालय में, ब्राह्मण के घर में, गुरु के घर में, दिन में, सबेरे, सन्ध्या को, अपवित्र अवस्था में, दवा लेने के बाद, बिलकुल भूखे, खाने के बाद तुरन्त ( भोजन के बाद ३ घण्टे तक सहवास हानिप्रद है), मित्र के और गुरुजनों के बिछौने पर, मल-मूत्र त्याग के वेग
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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