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________________ धर्म-कर्म-रहस्य में, दुःखी मनसे, आवेग में, क्रोध में, व्यायाम करके, थकावट में, उपवास के दिन और दूसरे लोगों के सामने खो-सहवास नहीं करना चाहिए। मनु० अ० ३ श्लो०४६ से ४६ के अनुसार ऋतुकाल के प्रथम ४ रात्रि और ११ वीं और १४ वीं रात्रि निन्दित है और शेष छः में सम में वालक और विषम में कन्या की उत्पत्ति होगी। अतएव १० में भी केवल पाँच रात्रियाँ रह गई और इनमें भी निन्दित तिथि आदि को त्यागकर जो केवल पितृऋण से मुक्त होने के लिये सन्तानार्थ स्त्री-सहवास धर्म समझकर करता है वह गृहस्थ भी ब्रह्मचारी है । वचन है निन्धास्वष्टासु चान्यासु स्त्रियो रात्रिषु वर्जयन् । ब्रह्मचायेंद भवति यत्र तत्राश्रमे वसन् ॥ मनु अ० ३-५० ऋतातो खदारेषु सङ्गतिर्वा विधानतः । ब्रह्मचर्य तदेवोक्त गृहस्थाश्रमवासिनाम् ।। याज्ञवल्क्य ऋतु के प्रथम ४थी, ११वीं और १४ वीं रात्रि और अन्य निन्दित तिथि की रात्रि कोत्यागकर जो केवल ऋतु को १६ रात्रियों के भीतर सन्तानार्थ स्रो-सहवास करता है वह जहाँ कहीं, अर्थात् गृहस्थाश्रम में, रहकर भी ब्रह्मचारी बना रहता है । ऋतुकाल में अपनी धर्मपत्नी से शास्त्र के आदेशानुसार केवल सन्तानार्थ समागम करनेवाला पुरुष गृहस्थाश्रम में रहता हुआ भी ब्रह्मचारी है।
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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