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________________ धर्म-कर्म-रहस्य . एकादशी आदि व्रत के दिन उपवास करना इन्द्रिय-निग्रह और . आरोग्य के लिये भी परमावश्यक है। जननेन्द्रिय-निग्रह जननेन्द्रिय का निग्रह प्रधान निग्रह है, क्योंकि काम प्रबल शत्रु है। इसके निग्रह से वीर्य की रक्षा होती है जो मेधा, स्मृति, वल, ओजस, आयु, स्वास्थ्य, पुरुषार्थ आदि का कारण है और जिसके दुरुपयोग और अपव्यय से ये सब नष्ट होते हैं । वीर्य के अपव्यय और दुरुपयोग से मन कमज़ोर और विशेष चंचल भी होता है जिसके कारण इन्द्रियों की कुप्रवृत्ति होती है और इस प्रकार धर्म का नाश होता है। जननेन्द्रिय का उपयोग केवल उत्तम और आवश्यक सन्तान की उत्पत्ति के लिये करना चाहिए जो पितृ-ऋण से मुक्त होने के लिये एक प्रकार का यज्ञ है। जो अपनी पत्नी के साथ भी विषयभोग की भाँति व्यवहार करते हैं वे शरीर और मन दोनों को अपवित्र और कलुषित करते हैं किन्तु जो अविहित मैथुन अथवा वीर्य का दुरुपयोग करते हैं वे अवश्य अध:पतित होते हैं और इसका सब प्रकार से बहुत भयानक परिणाम होता है। यह परमावश्यक है कि बाल्यावस्था में वीर्य-रक्षा जिसका नाम ब्रह्मचर्य है उसके पालन में सब प्रकार से अत्यन्त सावधानी रहे और अट्ठारह वर्ष से पचीस वर्ष के भीतर विवाह हो,
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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