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________________ जिह्वा निग्रह ८१ आदि राजसिक पदार्थ हैं । सब प्रकार की नशीली वस्तुएँ जैसे मदिरा, ताड़ी, चाय, काफी, भाँग, गाँजा, चरस, अफीम आदि तामसिक पदार्थ हैं। राजसिक और तामसिक भोजन दुःख, व्याधि, बुद्धि की मलिनता और इन्द्रियों की कुत्सित उत्तेजना के कारण है और सात्विक भोजन से शरीर स्वस्थ, सन पवित्र, रोग की निवृत्ति और बल तथा तेज की वृद्धि होती है। भोजन के काल के विषय में स्मृति का वचन है--- सायं प्रातद्विजातीनामशनं श्रुतिचोदितम् । नान्तरा भोजनङ्कुर्यादग्निहोत्रसमेा विधिः ॥ ६१ ॥ हारीत अ० ४ सन्ध्या और पूर्वाह्न में भोजन करने की विधि द्विजों के लिये वेद ने दी है; इस बीच में दोवारा भोजन नहीं करे जिसके न करने से इसका फल अग्निहोत्र के तुल्य है। भोजन को खूब चबाकर बहुत धीरे धीरे खाना चाहिए, उसमें कदापि शीघ्रता , नहीं करना चाहिए। धीरे धीरे खूब चबाकर खाने से भोज्य पदार्थ शीघ्र पच जाता और अधिक पुष्टिकर होता है और शीघ्रता करने से अपक्व रह जाता और व्याधि का कारण होता है। भोजन का परिमाण मिताहार होना चाहिए जिसका लक्षण शास्त्र में यों है कि दो भाग उदर का अन्न से भरा जाय, एक भाग जल से और एक भाग वायु के सञ्चालनार्थ खाली रहे ।
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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