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अस्तेय
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जी ने उससे पूछा कि अब तुम अपने को क्या देखते और समझते हो ? उसने उत्तर दिया कि मैं भैंस का चच्चा हूँ । चूँकि उस विद्यार्थी का स्वाभाविक चित्त भैंस के बच्चे पर जाता था, इस कारण उस स्वाभाविक प्रिय पदार्थ पर मन को एकाग्र करने से चित्त एकाग्र हो गया और ऐसी प्रगाढ़ एकाग्रता हो गई कि ध्याता उसके कारण भावना से ध्येय बन गया । इस प्रकार किसी को एक विषय पर एकाग्रता की सिद्धि हो जाने से और उसके द्वारा एकाग्र करने की शक्ति प्राप्त होने से वह तब से जिस विषय पर चित्त को एकाग्र करना चाहेगा उस पर शीघ्र एकाग्र हो जायगा, क्योंकि एकाग्रता की शक्ति एक बार भी अपनी इच्छा के अनुसार प्राप्त होने से फिर एकाम करना सहज हो जाता है। किसी विषय पर चित्त के एकाग्र होने से उसका श्रभ्यन्तरिक तत्त्व तक घोध में था जाता है और विद्वानों के बड़े बड़े प्राविष्कार और ज्ञान का कारण यह चित्त की एकाग्रता की शक्ति है 1
अस्तेय
चौथा धर्म अस्तेय है जिसका अर्थ अन्याय से किसी की कोई वस्तु किसी प्रकार से न लेनी अर्थात् स्तेय न करना है । यह स्तेय दोप केवल चोरी डकैती से दूसरे के धन को हर करना ही नहीं है किन्तु दूसरे की वस्तु मात्र को, छोटी हो अथवा
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