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________________ दम अपना और दूसरे का भी, व्यवसाय में सफलता, विद्याभ्यास में निपुणता आदि एकाग्र और शान्त मन के उत्कट सङ्कल्प द्वारा प्राप्त होती हैं। जैसा पहिले कहा जा चुका है, मन उभयास्मक है। ऐसे नितान्त स्वार्थ-साधन में, जिसमें अन्याय और अधर्म और पराये की क्षति तक की जाती है, इसके प्रयोग से किंचित् लाभ होने पर भी अन्त में कर्ता का सर्वनाश होता. है; किन्तु आत्म-शुद्धि, काम क्रोधादि का दमन, विद्योपार्जन, परोपकार, ज्ञान-प्राप्ति, ईश्वरोपासना, कर्त्तव्यपालन आदि सत्कर्म में प्रयोग करने से परम कल्याण की लब्धि होती है । अन्तःकरण जब सङ्कल्प विकल्प करता है तो वह मन है, जब पूर्व अथवा वर्तमान अथवा भविष्य के विषय का चिन्तन करता है तो वह चित्त है और सङ्कल्प, विकल्प और चिन्तन के पश्चात जो निश्चय करता है वह बुद्धि है। इन सबमें जो अहंभाव वर्तमान रहता है वह अहङ्कार है। ये चारों-मन, चित्त, बुद्धि और अहङ्कार--एक अन्तःकरण के चार प्रकार के भाव हैं, वास्तव में एक हैं। चारों की शुद्धि का नाम दम है। मन-निग्रह अत्यन्तावश्यक किन्तु बहुत कठिन है। इसका निग्रह सांसारिक भोग के विषय को विचार द्वारा अनात्म और • नाशवान् और अन्तिम परिणाम में दुःखद समझ उनकी आसक्ति का त्याग करने और केवल आत्मा को सत्, चित् और आनन्दरूप वोध करने से होगा। इस बोध के लिये भगवन्नाम अथवा मन्त्र के जप और ध्यान रूपी अभ्यास की आवश्यकता
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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