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दम
प्रत्येक कर्म किये जाने के पहिले उसकी. इच्छा, सङ्कल्प अथवा वासना मन में होती है। अतएव जिसके चित्त में मलिन वासना नहीं रहेगी और दुष्ट भावना के सोचने में जो प्रवृत्त न रहेगा उसके द्वारा कोई.दुष्ट कर्म हो नहीं सकता।
मानसं सर्वभूतेषु वर्तते वै शुभाशुभम् । अशुभेभ्यः सदाऽऽक्षिप्य शुभेष्वेवावतारयेत् ॥
__ महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय ३०६ सब लोगों के मन में शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की भावनाएँ रहती हैं किन्तु मन को अशुभ भावना से हटाकर शुभ में लगाना चाहिए। मनुष्य मन के ही कारण मनुष्य हुआ। मन मलिन वासना में फंसने से बन्धन का कारण होता है और बुरी वासना से छूटकर पवित्र 'और शान्त होने पर मोक्ष का कारण होता है। अतएव मन की शुद्धि और निग्रह करना अत्यन्तावश्यक है। ___मन में अनन्तानन्त शक्ति है, जो उसके शुद्ध और एकाग्र होने से प्राप्त होती है। पूर्व में और आजकल भी देखा गया कि सङ्कल्प मात्र से रोग-शोक-निवारण, विग्रह-शान्ति, धर्मप्रवृत्ति प्रादि उपकारी कार्य होते हैं और इसी प्रकार इस शक्ति के दुरुपयोग करने से दूसरों में रोग, शोक, भय, भ्रम आदि उत्पन्न हो सकते हैं। मेसोरिजम, हिपनाटिज़म आदि के आधुनिक चमत्कार केवल मनेयोग के नीचे की श्रेणी