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धर्म-कर्म-रहस्य ऐसे को देवता लोग ब्राह्मण कहते हैं। जो अपमानित होने से भी क्रोध नहीं करता और सम्मान किये जाने पर भी हर्षित नहीं होता है ऐसे को देवता ब्राह्मण कहते हैं।
दम तीसरा धर्म दम है जिसका अर्थ मन को विशुद्ध, शान्त और एकाग्र कर अन्तरात्मा के वश में करना और दुष्ट भावना के चिन्तन करने से, कुत्सित विषय-वासना की लालसा रखने से और दुष्ट सङ्कल्प के उत्पन्न होने, अथवा चिन्तन करने, से रोकना है। यजुर्वेद के ब्राह्मण का वचन है
यन्मनसा ध्यायति तद् वाचा वदति यद् वाचा वदति तत् कर्मणा करोति यत्कर्मणा करोति तदभिसंपद्यते ॥
जैसा मन में ध्यान करता वैसा बोलता है, जैसा बोलता वैसा कर्म करता है और जैसा कर्म करता वैसा फल पाता है।
शुक्रनीति का वचन हैमनसा चिन्तयन् पापं कर्मणा नाभिरीचयेत् । स प्राप्नोति फल तस्येत्येवं धर्मविदो विदुः ।।
मन में पाप करने की चिन्ता करने पर यद्यपि उस चिन्तन के अनुसार कर्म न किया जाय तो भी वह व्यक्ति उस पाप का फल पाता है।