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________________ 1 क्षमा श्रेष्ठं तत् क्षमामाहुरार्याः सत्यं तथैवार्ज्जवमानृशंस्यम् ॥ ५७ महाभारत शान्तिपर्व, अध्याय २-६६ गाली देने पर भी मैं कुछ नहीं उत्तर देता हूँ और प्रतिदिन ताड़ित होने पर भी मैं क्षमा ही करता हूँ, क्योंकि आर्य लोग क्षमा को श्रेष्ठ कहते हैं, और भी सत्य, कोमलता और दयालुता को । तुलाधार ने जाजलि को यों कहा या हन्याद्यश्च मां स्तौति तत्रापि शृणु जाजले ! समौ तावपि मे स्यातां न हि मेऽस्ति प्रियाप्रियम् ॥ . महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय २६१ हे जाजलि ! सुनो, जो मुझको मारता है और जो मेरी स्तुति करता है, वे दोनों मेरे लिए समान ही हैं। मुझको न कोई प्रिय है और न अप्रिय है । और ये वदेदिह सत्यानि गुरुं सन्तोषयेत च । हिंसितश्च न हिंसेत तं देवा ब्राह्मणं विदुः || न क्रुध्येन प्रहृष्येच्च मानितोऽमानितश्च यः । सर्व्वभूतेष्वभयदस्तं देवा ब्राह्मणं विदुः ॥ महाभारत जो सदा सत्य बोलते हैं, गुरु लोगों को संतुष्ट रखते हैं और कोई हानि करे तो भी हानि के बदले हानि नहीं करते "
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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