SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षमा हे ब्राह्मण ! तुम आये यह बड़ी उत्तम बात हुई । क्षण भर इस पलँग पर बैठो। हे प्रभो ! आये हुए तुमको न जाननेवाले हमारे अपराधों को तुम्हें क्षमा करना चाहिए। हे तात मुने! तुम्हारे चरण बहुत ही कोमल हैं और मेरा वक्षःस्थल कठोर है जिसके स्पर्श से तुम्हारे चरणों को पीड़ा हुई। ऐसा कहकर अपने हाथ से उस ब्राह्मण के चरण को दवाते हुए विष्णु भगवान् कहने लगे कि हे ब्राह्मण! तुम तीर्थों को भी पवित्र करनेवाले अपने चरणोदक से लोकों सहित मुझे और मुझमें रहनेवाले सकल लोकों को पवित्र करो। हे भगवन् ! आज मैं लक्ष्मी के निरन्तर रहने का स्थान हुआ हूँ, क्योंकि तुम्हारे चरण के स्पर्श से निष्पाप हुए मेरे वक्षःस्थल पर लक्ष्मी स्थिर रहेगी। ऊपर कथित श्रीभगवान् की उक्ति का सवको अवश्य अच्छी तरह मनन करना चाहिए और इसके अतुलनीय क्षमा-भाव को स्वर्णाक्षर में हृदय में धारण करना चाहिए, क्योंकि यहाँ केवल क्षमा ही नहीं है किन्तु श्रीभगवान के सहस्रनाम में जो दो नाम "अमानी" और "मानद" (स्वयं मानरहित किन्तु दूसरों को मान देनेवाले) हैं उनकी पराकाष्ठा है। जहाँ हम लोग तुद्रातिक्षुद्र नाममात्र के अपमान के कारण क्रोध से अधीर होकर गालियाँ बकते और आघात करने पर प्रस्तुत हो जाते हैं वहाँ त्रिलोकनायक स्वयं श्रीभगवान् का अकारण वाड़ना पर अपनी दीनता और अधीनता- केवल वाक्य से नहीं किन्तु ऋषि के चरण को दबाके---दिखलाना
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy