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क्षमा इस प्रकार यह आघात-प्रतिवात दोनों में परस्पर उत्तरोत्तर अनेक काल तक चलेगा जिससे दोनों की वड़ो हानि होगी। किन्तु एक क्षमा करने से इन सव दोषों और आपत्तियों की निवृत्ति हो जायगी। क्षमा और अहिंसा की पूर्ण पूर्ति तभी होती है जब कि अपराध-कर्ता का अपकार करने के बदले उसके दुष्ट खभाव के मिटाने का यत्न किया जाय। इसमें क्षमाशील को क्षमा के कारण सफलता अवश्य कभी न कभी मिलेगी। तब वह अपराधो क्षमाशील का मित्र ही नहीं किन्तु उपकारी तक वन जा सकता है। महाभारत वनपर्व अ० २८ का वाक्य है
मूदुना दारुणं हन्ति मृदुना हन्त्यदारुणम् । नासाध्यं मृदुना किंचित्तस्मात्तीव्रतर मृदु ॥
कोमलता अर्थात् क्षमा से द्वेष का नाश होता है और द्वेष के अतिरिक्त का भी सुधार होता है, क्षमा से कुछ भी असाध्य नहीं है, अतएव क्षमा सबसे प्रभावशाली है।
ज्ञान और धैर्य के वल से ही इस क्षमा का उचित अभ्यास सम्भव है, अन्यथा नहीं। स्मरण रहे कि इसमें मानसिक भावना मुख्य है अर्थात् मन में कर्ता की अज्ञता पर शोक के वदले उसके प्रति द्वेष का भाव तनिक नहीं प्रांना चाहिए किन्तु उसके अज्ञान और द्वेष-भाव के मिटाने की शुभ-कामना और प्रार्थना चित्त में आनी चाहिए। हिंसा-द्वेष के एक ओर से किये जाने पर यदि दूसरी ओर से भी वैसी ही भावना की