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धृति आजकल कई लोग ऐसा कहते हैं कि संतोष के धारण करने से उन्नति में बाधा होगी और लोग अकर्मण्य और आलसी हो जायेंगे। यह धारणा ठीक नहीं है। संतोष और धैर्य के धारण का उद्देश्य यह नहीं है कि कर्तव्य-पालन न किया जाय अथवा किसी कार्य के साधन के लिये अथवा बाधा के मिटाने के लिये आवश्यक उद्योग और परिश्रम न किये जायें । धैर्य और संतोष की धारणा से बहुत बड़ा लाभ यह है कि इनके कारण चित्त स्वस्थ और शान्त रहता है जिसका परिणाम यह होता है कि कार्य करने की क्षमता की वृद्धि होती है और सफलता की सम्भावना भी बढ़ जाती है। जो सदा तृष्णा में निमग्न रहेगा और सदा अधिक से अधिक की प्राप्ति के लिये लालायित, व्यग्र और व्याकुल रहेगा ( जिसके कारण लोभअस्त भी हो जायगा) वह सदा चिन्ता और अशान्ति से दग्ध होता रहेगा और उसका जीवन आदि से अन्त तक सुख के बदले दुःखमय हो जायगा। यदि कहा जाय कि ऐसी अवस्था उत्तरोत्तर उन्नति के लिये आवश्यक है तो इसमें विचारणीय यह है कि यह दुर्लभ मनुष्यजीवन क्या केवल भोजन, पान, वस्त्र, सवारी, गृह, काम-वासना आदि के भोग के लिये ही है ? यदि ऐसा ही है तो पशु और मनुष्य में क्या भेद हुआ ?.क्योंकि ये सव पशु को अनायास बिना विशेष परिश्रम किये लब्ध हैं। और यदि मनुष्य-जीवन का मुख्य ध्येय केवल सांसारिक-विषय-प्राप्ति ही माना जाय, तो जीवन व्यर्थ