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धृति
ज्ञान का परमोज्ज्वल उदाहरण है। यथार्थ में यह उक्ति ठीक है कि
चलन्ति गिरयः काल युगान्तपवनाहताः । कृच्छपि न चलत्येवं धीराणां निश्चल मनः ।।
कभी युग के अन्त में प्रबल पवन के वेग से पहाड़ भी चलायमान होते हैं किन्तु धोरों का मन किसी अवस्थामें चलायमान नहीं होता। यदि कष्ट को ज्ञान और धैर्य के साथ निरुद्विग्न मन से सहा जाय तो वह एक प्रकार की तपस्या है जिससे अन्तर के दोषों का नाश होता है और नवीन प्रबल शक्ति उत्पन्न होती है। कष्ट के आने पर, धर्म और न्याय के पथ से विचलित न होकर, धैर्य से प्रसन्नतापूर्वक कष्ट के सहन रूपी तप से भोक्ता के सिवा जन-समुदाय को भी उदाहरण और अदृश्य परिणाम द्वारा लाभ होता है। सत्य के निमित्त श्रीभगवान रामचन्द्र और श्रीहरिश्चन्द्र के सहर्ष कष्ट उठाने पर संसार में सत्य का विशेष प्रचार हुआ। .श्रीसीताजी के वनवास के कष्ट सहने से पातिव्रत-धर्म का विशेष विकास हुआ और उसका प्रभाव अब तक वर्तमान है। श्रीसीताजी के श्री वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पर त्यागे जाने पर उन्होंने श्रीलक्ष्मणजी से जो अपना संवाद अपने पति के लिये कहा वह धैर्य और पातिव्रत-धर्म का अतुलनीय परमोज्ज्वल उदाहरण है। श्रीमतीजी ने कहा