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मनु के १० साधारण धर्म मनु ने अध्याय ६ में दश प्रकार के साधारण धर्म का विधान किया है जो नीचे उद्धृत है और उसमें भी दूसरा धर्म "क्षमा अहिंसा ही का उच्च प्राकार है
चतुर्भिरपि चैवैतैर्नित्यमाश्रमिभिद्विजैः। दशलक्षणको धर्मः सेवितव्यः प्रयत्नतः ॥११॥ धृतिः क्षमा दमो ऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । धीविद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥१२॥ दश लक्षपानि धर्मस्य ये विप्राः समधीयते ।। अधीत्य चानुवर्तन्ते ते यान्ति परमां गतिम् ।।९३॥
इन ब्रह्मचारी आदि चारों. आश्रमी द्विजों को सदा यत्नपूर्वक आगे कहे दशविध धर्मों का सेवन करना चाहिए । सन्तोष, क्षमा, सन-निग्रह, अन्याय से अथवा स्वेच्छा बिना किसी की वस्तु न लेना, पवित्रता, इन्द्रिय-निग्रह, बुद्धि-विच• क्षणता (शास्त्रादि के तत्त्व का ज्ञान ), विद्या (आत्मबोध ), सत्य, क्रोध न करना, ये दश धर्म के लक्षण हैं। जो द्विजाति दशविध धर्मों को जानते हैं. और जानकर उनका अनुष्ठान करते हैं वे परमगति को प्राप्त होते हैं।