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अहिंसा . सहज में सघ गया। वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड के अ० ७३ श्लोक १३ में पम्पासर के वर्णन में लिखा है कि वहाँ के पक्षियों का कोई वध नहीं करता था, अतएव वे मनुष्य को देखकर भयभीत नहीं होते थे। लिखा है
यद्ध्यायति यत्कुरुते धृति बध्नाति यत्र च । तदवाप्नोत्ययत्नेन यो हिनस्ति न किञ्चन ॥
मनुस्मृति अध्याय ५ भूताभयप्रदानेन सर्वान्कामानवामुयात् । दीर्घमायुश्च लभते सुखी चैव सदा भवेत् ॥ ५३ ॥
-संवर्तस्मृति धनं फलति दानेन जीवितं जीवरक्षणात् । रूपमारोग्यमैश्वर्यमहिंसाफलमश्नुते ॥
-बृहस्पतिस्मृति जो किसी की हिंसा नहीं करता अर्थात् किसी की कदापि कोई हानि नहीं करता और न दुःख देता है, वह जो ध्यान करता है, जो काम प्रारम्भ करता है और जो किसी गुप्त विषय के जानने के लिये मन को एकाग्र करता है वह सब में बिना विशेष यत्न के कृतकार्य हो जाता है। जो प्राणियों की कदापि कोई हानि नहीं करते, उनके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं और वे दीर्घायु और सुखी होते हैं। दान से धन मिलता