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धर्म का तत्व
१३
सहायता करना मुख्य धर्म है; किन्तु इसके विरुद्ध जो दूसरे को घृणा की दृष्टि से देखते और द्वेप तथा हानि करते अथवा ऐसा करने की इच्छा करते हैं; वे वैसा करने से, इस विराटू के एकात्मभाव के विरुद्ध हो जाने से, अपनी और विश्व की भी . हानि करते हैं । बृहदारण्यक उपनिषद् का वचन है
इदं मानुषं सर्व्वेषां भूतानां मध्वस्य मानुषस्य सर्व्वाणि भूतानि मधु ॥ १३ ॥
अयमात्मा सर्व्वेषां भूतानां मध्वस्यात्मनः सर्व्वाणि भूतानि मधु ॥
१४ ॥
सव भूतों के लिये मनुष्य मधु अर्थात् आवश्यक और लाभकारी है और मनुष्य के निमित्त सब भूत मधु हैं ॥ १३ ॥ सब भूतों के लिये आत्मा मधु है और आत्मा के निमित्त सब भूत मधु हैं ॥ १४ ॥
श्री शङ्कर स्वामी का वचन है
यस्मात् परम्परोपकार्येऽपि कारकभूतं जगत् सर्व्व पृथिव्यादि ।
पृथिवी आदि विश्व की वस्तु मान्न परस्पर में एक दूसरी वस्तु से उपकार प्राप्त करती है और दूसरी वस्तु का उपकार करती है ।
यह विश्व एक वृक्ष की भाँति है जिसके बीज को, जो परमात्मा का खयं चेतन अंश है, ईश्वर ने प्रकृति रूप क्षेत्र में