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धर्म-कर्म-रहस्य जैसे केवल एक पहिये के चलने से रथ नहीं चल सकवा, उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के दैव (प्रारब्ध ) की सिद्धि नहीं होती। दैव और पुरुषार्थ दोनों से कर्म की सिद्धि होती है, क्योंकि पूर्व जन्म का किया हुआ कर्म ही दैव है। ____ अवएव पुरुषार्थ करने ही पर उसके अनुसार देव ( पूर्व जन्मार्जित कर्म ) फल देता है किन्तु पुरुषार्थ न करने पर किसी को देव कुछ नहीं दे सकता। जो एक जन्म में अपनी चोग्यता और अवसर को कर्तव्यपालन, कर्मसञ्चय और परोपकारी कर्म आदि शुभ कर्म के करने में और ईश्वर की तुष्टि में लगाता है उसको उस जन्म में उनके द्वारा प्रारब्ध के सुधरने के सिवा दूसरे जन्म में उनका शुभ फल अवश्य मिलता है। इसके सिवा उसको विशेष योग्यता और अवसर उन कामों के करने के लिये मिलते हैं। किन्तु जिसने अपने अवसर को व्यर्थ जाने दिया अर्थात् जिस उत्तम और उपकारी कर्म के करने योग्य वह था उनको नहीं किया, वह दूसरे जन्म में ऐसा होगा कि उन कर्मों के करने की तीन लालसा तो उसमें रहेगी किन्तु उनके करने की योग्यता वह अपने में नहीं पावेगा अथवा अवसर नहीं प्राप्त होगा, जिसके कारण अत्यन्त दुःखित होगा। जिस पुरुष को अपने किसी आश्रित का पालन-पोषण करना था किन्तु उसको जिसने नहीं किया और पालन पोषण करने के बदले उसकी हानि की वह आश्रित,