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कर्म-फल अनिवार्य
.१४७ । आत्मा, न ग्रह और न काल है; इसका प्रधान कारण तो मन
ही है जिसके द्वारा यह संसार-चक्र परिभ्रमित होता है । . महाभारत, अनुशासनपर्व, अध्याय १ में कथा है कि गौतमी नाम की एक साध्वी त्रो का पुत्र साँप के काटने से मर गया। अर्जुन नामक व्याधा ने उस साँप को पकड़कर गौतमी के पास लाकर उसके मारने की आज्ञा माँगी। गौतमी ने क्षमा करने को कहा किन्तु व्याधा ने नहीं माना। साँप ने कहा कि मैं निर्दोपहूँ, मैंने मृत्यु की प्रेरणा से बालक को काटा है। व्याध ने साँप को छोड़ने से इनकार किया। मृत्यु ने आकर कहा कि न मेरा दोष है और न साँप का। काल की प्रेरणा से मैंने साँप को प्रेरणा कर बालक की मृत्यु करवाई। इस पर काल ने स्वयं आकर कहा
न ह्यहं नाप्ययं मृत्यु य लुब्धक पन्नगः । किल्विपी जन्तुपरणे न वयं हि प्रयोजकाः ७०॥ . अकरोद्यदयं कम तन्नोर्जुनक चोदकम् । विनाशहेतुर्नान्योऽस्य वध्यतेऽय स्वकर्मणा ॥१७॥ . . महाभारत, अनुशासनपर्व, अध्याय १
काल ने कहा कि इस बालक के मरने का दोषी न मैं हूँ, न मृत्यु और न लोभी सर्प है और न हममें से कोई प्रेरक है। अर्जुन ! जैसा कर्म इसने किया था उसी कर्म ने इस सर्प को प्रेरणा करके कटवाया। इस बालक के विनाश का हेतु