SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु की परावस्था १३७ पड़ जाता है कि उसके कारण उसके बाद के जन्मों में उसकी उन दुःखरूप फन देनेवाले कर्मों की ओर स्वभावतः निवृत्ति रहती है और सुखरूप फल देनेवाले कर्मों की ओर स्वभावतः प्रवृत्ति होती है। इस संस्कार के कारण एक जन्म की उत्तम वासना और इच्छा उसके बाद के जन्म में उसकी योग्यता बन जाती है। वैसे ही बार-बार की सोची हुई भावना के किये कर्म दूसरे जन्म में स्वभाव पनकर प्रकट होते हैं। मनुष्य की अान्तरिक योग्यता-जैसे विचारशक्ति, विद्या प्राप्त करने की शक्ति, उत्तम और उच्च स्वभाव, बुद्धि की तीक्ष्णता, धर्मप्रवणता इत्यादि सद्गुण-पूर्व जन्म की उत्तम भावनाओं और फर्म के परिणाम हैं। वैसे ही सुद्रता, इन्द्रियों के दुष्ट विषयों में आसक्ति, अविवेकता, स्वार्थपरायणता, धर्मविमुखता, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मान, मत्सर इत्यादि असद्गुण पूर्व जन्म की दुष्ट भावना के परिणाम है। आन्तरिक योग्यता होने के कारण सद्गुण शरीर में प्रविष्ट हो जाता है, अतएव जो सद्गुण एक वार प्राप्त होता है वह फिर खाया नहीं जा सकता। यथार्थ प्रानन्द मनुष्य को आन्तरिक मदगुण की प्राप्ति ही से होता है और उसी से मनुष्य की यथार्थ उन्नति होती है और दुर्गुण का परिणाम-क्लेश-जन्म-जन्मान्तर में चला जाता है; अतएव सद्गुण-प्राप्ति और दुर्गुण के नाश करने की विशेष चेष्टा करनी चाहिए जिसके निमित्त उत्तम भावना करने, भक्ति भाव रखने, शुद्ध सङ्कल्प रखने, विवेक बढ़ाने और ज्ञान-प्राप्ति इत्यादि
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy