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________________ १३८ धर्म-कर्म-रहस्य में विशेष संलग्न रहना चाहिए और इनमें विशेष प्रवृत्तिः करनी चाहिए। जब किसी जीवात्मा के जन्म लेने का समय प्राता है तो कर्म-देवता-विशेषकर भुवर्लोक के आकाश के कर्म के गुप्त-चित्र के अधिष्ठाता चित्रगुप्त लोग उस जीव के कर्मों को,जोआकाश में चित्रित रहते हैं और जो चित्रगुप्त का खाता है उसमें, देखकर उसी के अनुसार उस जीवात्मा के निमित्त सबसे प्रथम छायाशरीर प्रस्तुत करते हैं। जैसे देश, जैसी जाति, जैसे वंश और जैसे माता पिता के घर में जन्म लेने से उसको अपने पूर्व के किये हुए कर्मों के फल भोगने का ठीक-ठीक अवसर मिलेगा, वैसे ही जन्म का निश्चय किया जाता है। ऐसा निश्चय करने पर उपयुक्त माता के गर्भ में उस छायाशरीर को प्रवेश कराया जाता है, और उसके साँचे पर स्थूल शरीर बनता है। यदि कर्मदेवता लोग ऐसा निश्चय करेंगे कि कर्मानुसार किसी जीवात्मा को १० वर्ष की उम्र में ही अन्धा हो जाना चाहिए अथवा १९ वर्ष में उसको अमुक व्याधि होनी चाहिए, जिसको अमुक अवधि तक रहना चाहिए, तब वे उस जीवात्मा को ऐसे गर्भ में जन्म देंगे जहाँ माता-पिता द्वारा उसके लिये ऐसा ही बीज उसके शरीर में श्रावेगा जिसका उपर्युक्त परिणाम होगा। और छायाशरीर के भी ऐसे नेत्र बनाये जायेंगे कि स्थूलशरीर के भी नेत्र उसी अनुसार होने के कारण ठीक १० वें वर्ष में वह अन्धा हो जायगा।
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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