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धर्म-कर्म-रहस्य होगा। वहाँ पर वह उस संस्कार के समान-स्वभाव के भुवर्लोक के अणुओं को (जिनमें उसके पूर्व जन्म के भी अणु रहेंगे)आकर्षित करेगा और उन्हीं से उसका नया सूक्ष्म शरीर प्रस्तुत होगा। उसमें ऐसे विषयवासना के संस्कार दुष्ट स्वभाव इत्यादि रूप में दूसरे जन्म में प्रकाश होंगे, जिसके कारण उसमें स्वभावतः दुष्ट कर्म करने की विशेष प्रवृत्ति होगी। जिस व्यक्ति के इन्द्रिय अपने वश में थे और दुष्ट विषयवासना तथा वैसे कर्म का जिसमें प्रभाव था वह मरने के बाद अपने को भुवोंक के ऊपर के उत्तम विभाग में पावेगा । वहाँ किसी सांसारिक भोगवासना का (प्रभाव के कारण ) स्फुरण न होने से प्रभाव रूप दुःख को न पाकर वह सुखी रहेगा। किन्तु जो वैराग्यसम्पन्न था और जिसमें किञ्चित् भी कोई स्वार्थसम्बन्धी सांसारिक वासना न थी, उसकी स्थिति भुवर्लोक में न होगी; वह सीधा उसके ऊपर के लोक स्वर्ग में चला जायगा। साधारण अणी का व्यक्ति, जिसमें दोनों-उत्तम और दुष्ट-वासना और कर्म रहते हैं, वह भुवीक में आवश्यक काल तक रहकर, उससे छुटकारा पाकर, स्वर्लोक में जाता है* : भुवर्लोक में जिन क्षुद्र, . दुष्ट और साधारण भावनाओं तथा कर्मों के मानसिक चित्रों । का संस्कार उसके चित्त में था वह संस्कार, स्वर्लोक में जाने पर,
* सभी मनुष्य भुवोक के बाद किञ्चित् काल के लिये वर्लोक में अवश्य जाते हैं, किन्तु नीची श्रेणी के व्यक्ति स्वर्लोक में सोये हुए की भांति रहते हैं। उनको वहीं का विशेष अनुभव नहीं होता।