________________
१२२
धर्म-कर्म-रहस्य चित्त से स्मरण करते, सोचते और भावना करते हैं, बुद्धि द्वारा निश्चय करते हैं, और मुख से वोलते हैं उन सवको और उनके फल को कर्म कहते हैं। जैसा कर्म किया जाता है उससे तादृश फल निकलता है अर्थात् अच्छे कर्म का अच्छा फल होता और दुष्ट कर्म का दुष्ट फल होता है। मनु भगवान् का वाक्य है
शुभाशुभफलं कर्म मनोवाग्देहसम्भवम् । कर्मना गतयो नणामुत्तमाधममध्यमाः ॥ ३ ॥
अध्याय १२ शरीर, मन और वचन से जो अच्छा अथवा बुरा कर्म मनुष्य करता है उसके ही अनुसार उत्तम, मध्यम और कनिष्ठ गति प्राप्त करता है। कर्म का उत्पादक मुख्य रूप से अहङ्कार और मन है। जैसे
तस्येह त्रिविधस्यापि न्यधिष्ठानस्य देहिनः । दशलक्षणयुक्तस्य मनो विद्यात्मवर्तकम् ।। ४ ॥
मनुस्मृति, अ० १२ देहधारी जीव के तन, मन और वचन के आश्रित उत्तम, . मध्यम तथा अधम कर्मों का प्रवर्तक मन को ही जानो। वे तीनों प्रकार के अधम कर्म नीचे लिखे दश लक्षणों से युक्त रहते हैं
परद्रव्येष्वभिध्यानं मनसानिष्टचिन्तनम् । . . वितथाभिनिवेशश्च त्रिविधं कर्म मानसम् ॥ ५॥ ..