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________________ कर्म १२१ श्वःकार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्न चापराह्निकम् । नहि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वाऽकृतम् ।। १५ ।। को हि जानाति कस्याध मृत्युकालो भविष्यति । युवैव धर्मशीलः स्यादनित्यं खलु जीवितम् ॥ १६ ॥ महाभारत, शान्तिपर्व अध्याय १७५ जो कल्याणकारी कर्म है उसको अभी-करो, तुम्हारा समय च्यर्थ न वीते, किसी कार्य की समाप्ति होने के पूर्व मृत्यु आ जाती है ॥१४॥ जो काम सबेरे करना हो उसको अभी करना चाहिये, अपराह्न समय के काम को पूर्वाह्न ही में करना चाहिये, क्योंकि कौन काम इसने किया और कौन काम नहीं किया इसकी मृत्यु प्रतीक्षा नहीं करती ॥ १५॥ कौन जानता है कि किसका इस समय मृत्युकाल आ जायगा ? अतएव युवावस्था ही में धर्माचरण करना चाहिये, क्योंकि जीवन अनित्य है ।१६॥ सारांश यह है कि केवल यथार्थ धर्माचरण ही दोनों लोकों की सब प्रकार की उन्नति, अभ्युदय और यथार्थ सुख का एक मात्र कारण है, अन्य नहीं। कर्म हम लोग अहङ्कार से प्रेरित होकर शरीर से इन्द्रियों द्वारा जो कुछ कर्मोत्पत्ति किया करते हैं, मन से सङ्कल्प करते हैं,
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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