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________________ १२० धर्म-कर्म-रहस्य पाता है, अतएव प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा करके भी परलोक में सहायता पाने के निमित्त धर्म का संग्रह करना चाहिये ।।२४२॥ सवको सव अवस्था में धर्माचरण करना चाहियेअजरामरवत् माज्ञो विद्यामर्थ च चिन्तयेत् । गृहीत इत्र केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ।। बुद्धिमान् अपने को अजर अमर जानकर विद्या की प्राप्ति के निमित्त यत्न करे अर्थात् कभी उसकी प्राप्ति का यत्न न छोड़े, और मृत्यु ने केश पकड़ लिया है ऐसा जान धर्म का आचरण करे अर्थात् उसमें तनिक भी विलम्ब न करे। क्योंकिन धर्मकालः पुरुषस्य निश्चितो न चापि मृत्युः पुरुपं प्रतीक्षते । सदा हि धर्मस्य क्रियैव शोभना __ यदा नरो मृत्युमुखेऽभिवर्तते ॥ १८ ॥ महाभारत शान्तिपर्व, अ० २८८ मनुष्य के धर्म करने का कोई नियत समय नहीं है और मृत्यु भी मनुष्य की इच्छा को नहीं मानती अर्थात् जव आना चाहती है तव जाती है, अतएव सदा धर्म करने में प्रवृत्त रहना उत्तम है, क्योंकि मनुष्य सदा मृत्यु के मुख में पड़ा हुआ है। अचव कुरु यच्छे यो मा त्वां कालोऽत्यगादयम् । अकृतेष्वेव कार्येषु मृत्युई. सम्मकर्षति ॥ १४ ॥
SR No.010187
Book TitleDharm Karm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndian Press Prayag
PublisherIndian Press
Publication Year1929
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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